CLICK & SUPPORT

पानी के रूप

 पानी के रूप

sagar
sagar

धरती का जब मन टूटा तो 
झरना बन कर फूटा पानी 
हृदय हिमालय का पिघला जब 
नदिया बन कर बहता पानी ।।

पेट की आग बुझावन हेतु 
टप टप मेहनत टपका पानी 
उर में दर्द  समाया जब जब 
आँसू बन कर बहता पानी ।।

सूरज की गर्मी से उड़ कर 
भाप बना बन रहता पानी 
एक जगह यदि बन्ध जाए तो 
गगन मेघ रचता है पानी ।।

धूल कणों से घर्षण करके 
वर्षा बन कर गिरता पानी 
धरती पर कलकल सा बह कर 
सबकी प्यास बुझाता पानी ।।

सम्बंधित रचनाएँ

धरती के भीतर से आ कर 
चारों ओर फैलता  पानी 
कहीं झील कहीं बना समंदर 
सुंदर धरा बनाता पानी ।।

अपनी उदार वृत्ति से देखो 
सबको जीवित रखता पानी 
कहीं बखेरी हरियाली तो 
अन्न अरु फूल उगाता पानी ।।

#

सुशीला जोशी 

मुजफ्फरनगर

कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

CLICK & SUPPORT

You might also like