एक जनवरी भारत का,
कोई भी नूतन साल नहीं।।
चैत्र प्रतिपदा शुक्ल पक्ष,
नववर्ष है, किसको ख्याल नहीं?
पेड़ों में पत्ते हैं पुराने,
ठिठुर रहे हम जाड़े में।
धुंध आसमां में छाए हैं,
जलती आग ओसारे में।।
तन में लपेटें फटे पुराने,
कहीं न जाड़ा लग जाए,।
धूप सूर्य की नहीं मिल रही,
तरस रहें कि मिल जाए।।
हमें जनवरी ना भाये,
है हमसे कोई सुर-ताल नहीं।
एक जनवरी भारत का कोई,
भी नूतन साल नहीं।।
शीतलहर की चढ़ी जवानी,
मानों सूर्य बुढ़ाया है।
गिर गिरि-भू पर बर्फ जम गई,
हांथ पांव ठिठुराया है।।
कोउ पुवाल में घुसा हुआ है,
कोई घुसा रजाई में।
बच्चे बुढ़े ठिठुर रहे हैं,
आफ़त जाड़ बुढ़ाई में।।
आफ़त लेकर चढ़ी जनवरी,
जो हमको स्वीकार नहीं।
एक जनवरी भारत का कोई भी नूतन साल नहीं।
वृक्षों में पतझड़ होता है,
नया साल जब आता है।
नये नये पत्ते आते हैं,
पुष्प नया खिल जाता है।
आम्रमंजरी खिल जाती हैं,
कोयल गीत सुनाती है।
नीम विटप के नीचे मैया,
पचरा नौ दिन गाती है।।
नया साल नौ दिन हैं मनाते,
तप करके खिलवाड़ नहीं।
एक जनवरी भारत का कोई
भी नूतन साल नहीं।।
किसी देश का नया साल ,
भाता है कैसे भारत को?
नये साल में जब मां आ
निज हांथ सजातीं भारत को।
परे प्रकृति से हम भी नहीं हैं,
प्रकृति पुरानी लगती है।
फटे पुराने पत्ते तजकर
चैत नया तन धरती है ।।
चढ़ी जनवरी कहां नया?
कुछ नई प्रकृति की चाल नहीं।।
एक जनवरी भारत का कोई भी नूतन साल नहीं।।
पाण्डेय शिवशंकर शास्त्री “निकम्मा”
सोनभद्र (वाराणसी)
उत्तर प्रदेश।

Kavita Bahar Publication
हिंदी कविता संग्रह

Kavita Bahar Publication
हिंदी कविता संग्रह