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चाँदनी और लाल परी पर कविता

चाँदनी और लाल परी पर कविता

चांदनी पर कविता

चौदहवीं का चाँद है तू कहूँ या कुदरत की जादूगरी ।
जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

ओ मेरी चाँदनी ओ मेरी लाल परी।

रूप सलोना ऐसा जैसे खिलता हुआ गुलाब ।
लाल परी है तू रानी तेरा नहीं जवाब ।
तुझे देख कर गोरी हमने ऽऽऽ
तुझे देख कर गोरी हमने अपनी सुध बिसरी ।।
जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

कजरारी अँखियां तेरी हिरणी जैसी चाल ।
काली घटा शरमाये गोरी देख के तेरे बाल ।
फूल चमन बरसाये ऽऽऽ
फूल चमन बरसाये जिस राह से तू गुजरी।।
जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

गोरे गोरे गाल पे तेरे शर्मो हया की लाली ।
एक नजर तू ड़ाल दे जिधर छा जाये हरियाली ।
तू जन्नत की हूर है ऽऽऽ
तू जन्नत की हूर है या कोई लाल परी ।।
जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

लाल चुनरिया ओढ़ निकली जड़े है चाँद सितारे ।
एक झलक पा जाये तेरी वो मर जाये बिन मारे।
सज बन कर न निकलो गोरी ऽऽऽ
सज बन कर न निकलो गोरी जग की नजर बुरी ।।
जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

चौदहवीं का चाँद है कहूँ या कुदरत की जादूगरी ।
जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

केवरा यदु “मीरा “
राजिम

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