26 सितंबर विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है, लोगों में पर्यावरणीय स्वास्थ्य के प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना। हम सभी जानते हैं कि स्वस्थ रहने के लिए पर्यावरण को बचाना कितना जरूरी है। हर साल दुनियाभर में 26 सितंबर को विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। 

पेड़ की पुकार

सुनहरी लाल वर्मा ‘तुरंत’

रो-रोकर एक पेड़

लकड़हारे से एक दिन बोला

क्यों काटता मुझको भैया

तू है कितना भोला !

सोच समझ फिर बता मुझे

मैं तेरा क्या लेता हूँ?

मैं तो पगले! तुझको, जग को

बहुत कुछ देता ही देता हूँ।

सूरज से प्रकाश लेकर

मैं खाना स्वयं पकाता हूँ।

धरती माँ से जल ले-लेकर

अपनी प्यास बुझाता हूँ।

पी जहरीली वायु, तुझे

मैं शुद्ध पवन देता हूँ,

शीतल छाया देकर तेरा

दुःख भी सब हर लेता हूँ।

स्वयं धूप में तपकर तेरा

ताप मिटाता रहता हूँ,

अंदर-अंदर रोता फिर भी

बाहर गाता रहता हूँ।

तेरे नन्हे-मुन्नों को निज

छाया तले झुलाता हूँ

मीठी-मीठी लोरी गाकर

अपनी गोद सुलाता हूँ।

अपने हर दुःख की औषधि

काट गिराता है मुझको ही,

तू मुझसे ही पाता है,

तू मेरा ही दिया खाता है।

वर्षा नहीं देख पाएगा

ना तू अन्न उगा पाएगा

धरती ऊसर बन जाएगी

फिर बतला तू क्या खाएगा ?

देख न पाएगा बसंत तू

बाढ़ रोक ना पाएगा।

मुझे काट देगा पगले !

तू जीते जी मर जाएगा ।

आओ, पर्यावरण सुधारें

● धनंजय ‘धीरज’

आओ पर्यावरण दिवस का मन से मान करें।

पर्यावरण सुधारें जग को जीवन दान करें ।

इसमें लेते श्वास यही जीवन हैं अपना ।

स्वच्छ वायु के बिना जगत् में जीवन सपना ।

जिएँ और जीने दें सबको सुख का दान करें।

पर्यावरण सुधारें जग को जीवन दान करें ।

तरह-तरह के स्वयं प्रदूषण हम फैलाते हैं।

बदबू धुआँ भर के मन में हर्षाते हैं।

मिलों, कारखानों की दूषित गैसें पान करें।

पर्यावरण सुधारें जग को जीवन दान करें ।।

पढ़ते सुनते आए जल तो अपना जीवन है।

पीने को, जीने को, फसलों को संजीवन है।

रंग रसायन डाल, नहीं नदियों में जहर भरें।

पर्यावरण सुधारें जग को जीवन दान करें ।

तरह तरह की आवाजें जो शोर बढ़ाती हैं।

मन मस्तिष्क विकार घृणा आक्रोश बढ़ाती हैं।

शांति मंत्र सीखें तन-मन जीवन की पीर हरें ।

पर्यावरण सुधारें जग को जीवन दान करें ।

पर्यावरण हमारा

o आचार्य मायाराम ‘पतंग’

हमको जीवन देता है यह पर्यावरण हमारा ।

इसे नष्ट करने से होगा जीवन नष्ट हमारा ॥

अज्ञानी हम ज्ञान राशि,

औरों को बाँट रहे हैं।

उसी डाल पर बैठ उसे ही,

जड़ से काट रहे हैं।

माँ प्रकृति ने हमको पाला,

अपना दूध पिलाकर ।

हम उसको ही पीड़ित करते,

तिल-तिल जला जलाकर ।

सोचो फिर कैसे हो पाएगा कल्याण हमारा ?

हमको जीवन देता है यह पर्यावरण हमारा

पेट फाड़कर पर्वत का हम,

पत्थर बजरी लाते।

काट-काटकर जंगल,

नग को नंगा करते जाते ।

नंगे हैं जो पर्वत बोलो

किसकी शर्म करेंगे ?

निश्चित भोगेंगे वैसे ही,

जैस कर्म करेंगे।

कुदरत को अपमानित करके, क्या सम्मान हमारा ?

हमको जीवन देता है यह पर्यावरण हमारा ॥

धरती माँ ने बहुत फूल फल,

देकर हमको पाला ।

रस बरसाते सूरज चंदा,

देकर हमें उजाला ।

पवन प्राण बन स्वयं हमारी

साँसों में बसती है।

वर्षा ही जीवन धारण कर,

फसलों में हँसती है।

मानवता को मिला निरंतर सुखकर सत्य सहारा।

हमको जीवन देता है यह पर्यावरण हमारा ॥

रखिए इसका ध्यान जीव को,

चाहो अगर बचाना।

जितने ज्यादा लगा सको

धरती पर पेड़ लगाना ।

सर सरिता का जल जीवन की

प्रतिपल प्यास बुझाता ।

प्रकृति प्राणियों का सचमुच है,

माँ-बेटे का नाता ।

समझो संतानों के नाते क्या कर्त्तव्य हमारा।

हमको जीवन देता है यह पर्यावरण हमारा ॥

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