13 अप्रैल बेगुनाहों पर बमों की बौछार पर कविता

● सरयू प्रसादर

बेगुनाहों पर बमों की बेखबर बौछार की,

दे रहे हैं धमकियाँ बंदूक की तलवार की ।

बागे-जलियाँ में निहत्थों पर चलाई गोलियाँ,

पेट के बल भी रेंगाया, जुल्म की हद पार की ॥

हम गरीबों पर किए जिसने सितम बेइंतिहा,

याद भूलेगी नहीं उस डायरे-बदकार की ।

या तो हम भी मर मिटेंगे या तो ले लेंगे स्वरात,

होती है इस बार हुज्जत खतम अब हर बार की ॥

शोर आलम में मचा है लाजपत के नाम का,

ख्वार करना इनको चाहा, अपनी मिट्टी ख्वार की ।

जिस जगह पर बंद होगा तन शेरे-पंजाब का,

आबरू बढ़ जाएगी उस जेल की दीवार की ॥

जेल में भेजा हमारे लीडरों को बेकसूर,

लॉर्ड हार्डिंग तुमने अच्छी न्याय की भरमार की ।

खूने मजलूमों की ‘सूरत’ अब तो गहरी धार है,

कुछ दिनों में डूबती है आबरू अगियार की।

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