गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती पर कविता

गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती पर कविता : वे सिक्ख धर्म के अंतिम गुरु थे। सिख धर्म में गुरु गोबिंद सिंह का अहम योगदान माना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने सिख धर्म के कई नियम बनाए, जिनका पालन आज भी किया जाता है। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब की गुरु के रूप में स्थापना की। उन्होंने सामाजिक हितैषी का पुर्जोर का समर्थन किया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने दमन और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई, इसलिए लोगों के लिए एक महान प्रेरणा के रूप में उभरे।

गुरु हजूर जी साहिब

● डॉ. ब्रजपाल सिंह संत

गुरु हजूर जी साहिब, गोविंद सिंह को नमन करो।

अकाल पुरुष के अकाल तख्त पर, ताप-शाप सब शमन करो।

गुरु तेग बहादुर पिता आपके, गुजरी माँ का प्यार मिला।

पौष सुदी संवत सतरह सौ, तेईस को अवतार खिला ।

अत्याचारों को रोका, टोका था शासक अन्याई ।

सब कुछ न्योछावर कर डाला, थी बजी वीरता शहनाई।

जुल्मों की थी भरमार हुई, गुरुवर की आँखें भर आईं।

निहत्थे भोले-भालों को रहे मार, अधर्मी अन्याई ।

जात-पाँत का भेद मिटाया, छकाया अमृत सच्चे शाह ने ।

जुल्मी जालिम का किया खात्मा, सिक्खी धर्म खालसा ने ।

अकाल पुरुष की राह सुझाई, मात-पिता सुत चार दिए ।

देश का धर्म बचाने को, ‘काल-गाल’ भी वार दिए ।

सरहिंद शहीदी सात वर्ष, था नाम फतेह सिंह साहिब जी ।

जोरावर सिंह नौ वर्ष उम्र, जूझे जुझार सिंह साहिब जी ।

चमकौर साहिब में हुई शहीदी, अजीत सिंह नर नाहर था।

चारों साहिबजादों का कातिल, था बुजदिल जगजाहिर था ।

यवन घमंडी दौलत का, अपने भारी सेना बल का ।

गुरु सहारा वाहेगुरु था, पल-पल के सिमरण संबल का ।

पंच प्यारे, पाँच वायदे, पाँच कायदे रच डाले ।

पाँच वाणियाँ, पाँच ठाणियाँ, सारे ही सच कर डाले ।

पंच ककारों का गुरुजी ने संगत को संदेश दिया ।

कड़ा, केश, कंघा, कृपाण कच्छा सच्चा उपदेश दिया ।

गुरु आसन पर गुरुग्रंथ साहिब को ही पूरा सम्मान दिया।

वाहे गुरु का वीर खालसा यह संगठन को वरदान दिया।

जिसके सिंहनाद में दहक उठी तरुणाई थी।

नेजा और तलवार देश की लाज बचाने आई थी।

रणजीत नगारा बजता था जिससे दिल्ली थर्राई थी।

गुरु गोविंद सिंह ने भारत के दुश्मन की नींद उड़ाई थी ।

नाईं, धोबी, बढ़ई, लुहार, गूजर या जाट कहाते थे ।

सब गुरु सेना के सैनिक थे, सब वीर सिक्ख कहलाते थे।

सब में साहस विश्वास भरा, गुरु के बल पर लड़ जाते थे ।

अपनी रक्षा को स्वयं खड़े हो, सिंह नहीं भय खाते थे ।

गुरु का लंगर प्रसाद पाकर सब में अपार बल भरता था ।

वीरों की सेना थी अजेय, टकरानेवाला मरता था।

अब भी गोविंद सिंह कहकर जो रण में लड़ने जाता है।

वह विजयी होकर आता है या जगह स्वर्ग में पाता है।

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