श्रीरामनवमी पर कविता: चैत्र मास के शुल्क पक्ष की नवमी तिथि के दिन ही सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने धरती पर श्री राम के रूप में जन्म लिया था। राम लला के जन्म की पवित्र बेला को ही राम नवमी के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु अयोध्या के राजा दशरथ के घर जन्म लेकर उनके अवतार में स्वरूप के दर्शन हुए।
हर पल जो यादों में/प्रवीण शर्मा
हर पल जो यादों में रहते,
मेरा वंदन राम हैं
रोम-रोम में राम बसे हैं,
अलख निरंजन राम हैं।
जग जिसकी खुशबू से महके,
ऐसा चंदन राम है।
राम सभी के दिल की धड़कन
और अभिनंदन राम है ।
राम बसे हैं जन-जन में,
राम बसे हर महफिल में
सबका प्यार राम से है और,
राम बसे हैं तिल-तिल में ।
सूरज की किरणों में राम,
पुरवाई पवनों में राम ।
हनुमान के हृदय में और
दशरथ के चरणों में राम ।
कौशल्या का नूर है राम,
सीता का सिंदूर है राम ।
राम तपस्वी के तप में है,
भक्ति में भरपूर हैं राम ।
नगर – नगर और गाँव में राम,
पंचवटी की छाँव में राम ।
राम समुंदर की लहरों में,
और केवट की नाव में राम ।
मर्यादा की शाला राम,
प्रेम भरा हैं प्याला राम ।
राम मंत्र, सामग्री समिधा,
हवनकुंड की ज्वाला राम ।
तुलसी, केशव, गुप्त, कबीरा।
दिनकर और निराला राम ।
महादेवी, प्रसाद, पंत और
नीरज है मतवाला राम ।
विनय पत्रिका, कथा स्वयंवर,
गीत बने जल धारा राम ।
यामा, कामायनी संग में,
बच्चन की मधुशाला राम ।
राम तुम्हारे आदर्शों/ गोपालकृष्ण अरोड़ा
राम तुम्हारे आदर्शों पर फिर से आज कुठार है।
फिर से तेरी जनम भूमि पर खर-दूषन का वार है।
फिर से धरा शरण आई है, फिर से सुर-मुनि त्रस्त हैं।
फिर से दनुज रक्त संचय में, होते जाते व्यस्त हैं।
कब के विश्वामित्र खड़े हैं, राघव तुम्हें पुकारते ।
कब से यह शिव धनुष पड़ा है, कब से जनक निहारते।
दशरथ नंदन, वृद्ध पिता के फिर से वचन निबाह लो ।
अस्थि – शैल से हे रण-कर्कश, यूँ मत फेर निगाह लो ।
भूमि सुता को हरकर रावण, फिर से है ललकारता ।
घर-घर में सुग्रीव तुम्हारी, आकुल राह निहारता ।
हे मर्यादा-सिंधु, सेतु बाँधोगे कब सम्मान का ?
व्यर्थ नष्ट होगा भरताग्रज, बोलो कब विज्ञान का ?
रावण के दस शीश गिरेंगे, कब कटकर फिर धूल में ?
कब से मानवता महकेगी, इस धरती के फूल में ?
विकल अयोध्या पूछ रही है-रामराज कब आएगा ?
कब भारत का बच्चा-बच्चा, रघुपति राघव गाएगा ?