प्रणय मिलन कविता-सखि वसंत में तो आ जाते- डॉ सुशील शर्मा
सखि बसंत में तो आ जाते।
विरह जनित मन को समझाते।
दूर देश में पिया विराजे,
प्रीत मलय क्यों मन में साजे,
आर्द्र नयन टक टक पथ देखें
काश दरस उनका पा जाते।
सखि बसंत में तो आ जाते।
सुरभि मलय मधु ओस सुहानी,
प्रणय मिलन की अकथ कहानी,
मेरी पीड़ा के घूँघट में ,
मुझसे दो बातें कह जाते।
सखि बसंत में तो आ जाते।
सुमन-वृन्त फूले कचनार,
प्रणय निवेदित मन मनुहार
अनुराग भरे विरही इस मन को
चाह मिलन की तो दे जाते ,
सखि बसंत में तो आ जाते।
दिन उदास विहरन हैं रातें
मन बसन्त सिहरन सी बातें
इस प्रगल्भ मधुरत विभोर में
काश मेरा संदेशा पाते।
सखि बसंत में तो आ जाते।
बीत रहीं विह्वल सी घड़ियाँ,
स्मृति संचित प्रणय की लड़ियाँ,
आज ऋतु मधुमास में मेरी
मन धड़कन को वो सुन पाते।
सखि बसंत में तो वो आ जाते।
तपती मुखर मन वासनाएँ।
बहतीं बयार सी व्यंजनाएँ।
विरह आग तपती धरा पर
प्रणय का शीतल जल तो गिराते।
सखि बसंत में तो आ जाते।
मधुर चाँदनी बन उन्मादिनी
मुग्धा मनसा प्रीत रागनी
विरह रात के तम आँचल में
नेह भरा दीपक बन जाते।
सखि बसंत में तो आ जाते।
डॉ सुशील शर्मा