ऋतु बसंत आ गया
बिखरी है छटा फूलों की,
शोभा इंद्रधनुषी रंगों की,
कोयल की कूक कर रही पुकार,
ऋतु बसंत आ गया,
आओ मंगल-गान करें।
महुए के फूलों की मदमाती बयार,
आम्र मंजरी की बहकाती मनुहार,
सुरमई हुए जीवन के तार,
ऋतु बसंत आ गया,
आओ मंगल-गान करें।
महकी सी लगती है हर गली,
कुसुमित हर्षित है हर कली,
आनन्दित है सब संसार,
ऋतु बसंत आ गया,
आओ मंगल-गान करें।।
सरसों के पीले बासंती रंग से,
टेसू-पलाश की लालिमा लिए,
मौसम ने किया श्रृंगार ,
ऋतु बसंत आ गया,
आओ मंगल-गान करें।।
हर्ष में मग्न जनजीवन सारा,
पुलकित है घर आंगन प्यारा,
भँवरे करने लगे गुंजार,
ऋतु बसंत आ गया,
आओ मंगल-गान करें ।।
दुःख के बाद सुख का आना,
पतझड़ के बाद बसंत का आना,
कहता है जीवन का सार,
ऋतु बसंत आ गया ,
आओ मंगल-गान करें।
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पूर्णिमा सरोज
(व्याख्याता रसायन)
जगदलपुर(छ. ग.)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद