CLICK & SUPPORT

रुक्मणि मंगल दोहे

रुक्मणि मंगल दोहे

विप्र पठायो द्वारिका,
पाती देने काज।
अरज सुनो श्री सांवरे,
यदुकुल के सरताज।।

रुक्मणि ने पाती लिखी,
सुनिये  श्याम मुकुंद।
मो मन मधुप लुभाइयो,
चरण- कमल मकरंद।।

सजी बारात विविध विधि,
आय गयो शिशुपाल।
सिंह भाग सियार कहीं,
ले जावे यहि काल।।   

जो न समय पर पहुँचते,
यदुवर चतुर सुजान।
देह धरम निबहै नहीं,
तन न रहेंगे प्राण।।

त्रिभुवन सुन्दर आइयो
मोहि वरण के काज
गौरी पूजन जावते
रथ बैठूँ सज साज

पहले रथ बैठाइयो
विप्र सुधारन काज
पाछे खुद बैठे हरी
गणनायक सिर नाय

कुण्डनपुर हरि आ गये,
विप्र दियो संदेश ।
गिरिजा पूजन को चली,
धर दुल्हन को वेष।

जगदम्बे घट बसत हो,
मुझको दो वरदान।
वर हो सुन्दर साँवरा,
कृष्ण चन्द्र भगवान।

एक नजर  बाहर पड़ी,
मोहित सभी नरेश।
रथ बैठारी बाँह गह,
यदुकुल कमल दिनेश।

पुष्पाशर्मा”कुसुम”

CLICK & SUPPORT

You might also like