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सबकी प्यारी भूमि हमारी / कमला प्रसाद द्विवेदी



सबकी प्यारी भूमि हमारी, धनी और कंगाल की।

जिस धरती पर गई बिखेरी, राख जवाहरलाल की ।।

दबी नहीं वह क्रांति हमारी, बुझी नहीं चिनगारी है।

आज शहीदों की समाधि वह, फिर से तुम्हें पुकारी है।

इस ढेरी को राख न समझो, इसमें लपटें ज्वाल की।

जिस धरती पर… ॥१॥

जो अनंत में शीश उठाएं, प्रहरी बन था जाग रहा।

प्राणों के विनिमय में अपना, पुरस्कार है माँग रहा।

आज बज गई रण की श्रृंगी, महाकाल के काल की।

जिस धरती पर… ॥२॥

जिसके लिए कनक नगरी में, तूने आग लगाई है।

जिसके लिए धरा के नीचे, खोदी तूने खाई है।

सगर सुतों की राख जगाती, तुझे आज पाताल की।

जिस धरती पर… ॥३॥

रण का मंत्र हुआ उद्घोषित, स्वाहा बोल बढ़ो आगे।

हर भारतवासी बलि होगा, आओ चलो, चढ़ो आगे।

भूल न इसको धूल समझना, यह विभूति है भाल की।

जिस धरती पर… |४||

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