सामाजिक विषमता पर कविता- पद्म मुख पंडा

सामाजिक विषमता पर कविता- बही बयार कुछ ऐसी

कविता संग्रह
कविता संग्रह

जूझ रहे जीने के खातिर,
पल पल की आहट सुनकर,
घोर यंत्रणा नित्य झेलते,
मृत्यु देवता की धुन पर।
सुख हो स्वप्न, हंसी पागलपन,
और सड़क पर जिसका घर,
किस हेतु वह भय पाले,
जब मृत्यु बोध हो जीवन भर?
जो कंगाल वही भिक्षुक हो,
ऐसा नियम नहीं कोई,
जो धनवान, वही दाता हो,
होता नहीं, सही कोई।
है पाखंड, भरा समाज में,
किसको कहें सत्य का ज्ञान।
चहुं ओर है व्याप्त विषमता,
कोई दीन, कोई धनवान।
है विकास जर्जर हालत में,
जनता बने आत्म निर्भर,
बही बयार ऐसी कुछ अब तो,
फूंको बिगुल, व्यवस्था पर।
जीने का अधिकार सभी को,
नहीं रहा है, कोई अमर,
शासन राशन देता सबको,
कब तक हों, सब आत्म निर्भर?

पद्ममुख पंडा
ग्राम महा पल्ली
पोस्ट लोइंग
जिला रायगढ़ छ ग

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *