संस्कार पर कविता
अहो,युधिष्ठिर हार गया है,दयूत् क्रीड़ा में नारी को,
दुःसाशन भी खींच रहा है,संस्कारों की हर साड़ी को।
अपनी लाज बचाने जनता,
सिंहासन से भीड़ जाओ तुम,
भीख नही अधिकार मांगने,
कली काल से लड़ जाओ तुम,
विपरित काल घोर कलयुग है,ना याद करो गिरधारी को।
अहो,युधिष्ठिर….
सदियों को संस्कार सिखाकर,
हम अब तक सीना ताने हैं।
अपनाओ न पाश्चात्य सभ्यता,
रिश्ते उनके बेगाने हैं।
ढोना लोगो बंद करो अब,विलायती की लाचारी को।
अहो; युधिष्ठिर……
लोकतंत्र के नासूर बने,
जो घांव नही वो पलने दो,
सदियों से तुम छले गए हो,
अब और न खुद को छलने दो।
शीश विच्छिन्न अब कर डालो,तोड़ो तलवार दुधारी को।
अहो,युधिष्ठिर…..
शीतल प्रसाद
उकवा,बालाघाट(म.प्र.)