दिलीप कुमार पाठक सरस का ग़ज़ल

दिलीप कुमार पाठक सरस का ग़ज़ल

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kavita bahar

जिंदादिली जिसकी बदौलत गीत गाना फिर नया |
हँसके ग़ज़ल गाते रहो छेड़ो तराना फिर नया ||

है जिंदगी जी लो अभी फिर वक्त का कोई भरोसा है नहीं |
पल भर ख़ुशी का जो मिले किस्सा सुनाना फिर नया ||

हँसना हँसाना रूठ जाना फिर मनाना आ गया |
अच्छा लगे  ऐसा बनाना तुम बहाना फिर नया ||

दीदार पहले हुस्न का जी भर जरा कर लीजिए |
लिपटी लता का ख़्वाब आँखों में सजाना फिर नया ||

खींचातनी में रात बीती कह रही है आँख सब |
महके बदन उस गुलबदन का गुल खिलाना फिर नया ||

तबदीलियाँ होने लगी हैं देख लेना ऐ “सरस”|
है गुनगुनाती गूँज आयेगा ज़माना फिर नया ||

दिलीप कुमार पाठक “सरस”

दिवस आधारित कविता