सावन के दोहे

सावन के दोहे


बारिश की यादें लिए , सिसके सावन देख ।
वर्णन करना चाहता , काव्य सजा कवि लेख ।।

बीत रहा चौमास है , नीर बिना बेहाल ।
कहीं-कहीं वर्षा अधिक , संग उतारे काल ।।

रूठा सावन कह रहा , मैं जीवन पट चीत ।
कोई क्रंदन कर रहा , कोई गाता गीत ।।

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साजूँ अवनि सुजानिए , अनुपम प्रेम प्रगाढ़ ।
रूठा सावन कह चला , काल रूप मैं बाढ़ ।।

सूखी भू छत्तीसगढ़ , विस्मित सावन देख ।
लोग कहें कर प्रार्थना , बनो नहीं अब मेख ।।

ले आओ काली घटा , हे सावन मनमीत ।
व्योम-धरा पथ नृत्य से , साज दामिनी प्रीत ।।

सावन की शुभ पूर्णिमा , दे जाना सौगात ।
प्यारे सावन भ्रात तुम , करना शुभ बरसात ।।
(नरेन्द्र वैष्णव “सक्ती”)
छत्तीसगढ़

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