शाकाहार जीवन/ममता श्रवण अग्रवाल

शाकाहार जीवन/ममता श्रवण अग्रवाल

शाकाहारी बनकर हम
धर्म का पथ अपनाएंगे,
मानव है हर जीव का रक्षक,
बने नही वो किसी का भक्षक।

साँसों की गति के लिए चाहिये,
जल ,वायु, निद्रा और भोजन।
ये ही हैं वो मूल तत्व जीवन के,
इनसे ही पोषित होता यह तन।।

पर कैसा हो जल,भोजन अपना,
यह है बात बड़ी विचारणीय।
जैसा हो अन्न, वैसा बने यह मन,
यह सूत्र है सतत चिर वंदनीय ।।

सत, रज ,तम ये त्रय गुणं होते,
जो आधरित होंते भोजन पर।
सत ,तम, रज में ,सत, श्रेष्ठ है,
और सत, सात्विक भोजन पर।।

अन्न ,फल, मेवों से पूर्ण धरा यह,
जो करती हैं जन जन का पोषण।
पर हम अपनी क्षुधा शमन हित,
करते जीवों का भक्षण, शोषण।।

शाकाहार को तज कर हम अब,
मांसाहार को नित अपनाते ।
और सजीव ,जीवित तन मन से,
हम क्यों अपनी क्षुधा मिटाते ।।

पल भर तुम ठहर का सोचो,
क्या तुम इनको जीवन दे पाओ।
यदि दे न सकते जीवन तुम,
फिर लेने का औचित्य कहो क्यों।

अतः आहार का मर्म समझ लो,
धर्म है सबका पोषण करना।
और जिस आहार से होवे हनन ,
आहार नही, है वो शोषण करना।

सो अपना कर शाकाहार जीवन,
बने हम सात्विक शाकाहारी।
यही धर्म है हम मानव का,
कि होंवे तन मन से पीड़ाहारी।।

ममता श्रवण अग्रवाल
सहित्यकार सतना