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सरकारी रिपोर्ट पर कविता

सरकारी रिपोर्ट पर कविता

सरकारी रिपोर्ट में कभी
मजदूर नहीं होते
मज़दूरों की पीड़ा नहीं होती
मज़दूरों के बिलखते बच्चे नहीं होते
नहीं होता उनके अपनी धरती से पलायन होने का दर्द
नहीं होती उनकी भूख और प्यास की कथा
बूढ़े माँ-बाप से अलगाव की मज़बूरी
और शासन-प्रशासन की नाकामी की बात
सरकारी रिपोर्ट में कतई नहीं होती

सरकारी रिपोर्ट में होती है
खोखली राहत पैकेजों की लंबी सूची
बेअसर सरकारी योजनाओं का गुणगान
सब्ज़बाग दिखाते सरकारी पहलों की तारीफ़ें
प्रशासनिक अमलों की, की गई जीतोड़ कोशिशें
सरकार की शाबाशी
और पहली से आख़िरी पृष्ठ तक
‘मजदूर कल्याण’ की दिशा में
गढ़ी गई सफलता की ऐसी कहानी
जो वास्तविकता से परे शुद्ध काल्पनिक होती है।

— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479

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