सुधा राठौर जी के हाइकु

सुधा राठौर जी के हाइकु

छलक गया
पूरबी के हाथों से
कनक घट

बहने लगीं
सुनहरी रश्मियाँ
विहान-पथ

चुग रहे हैं
हवाओं के पखेरू
धूप की उष्मा

झूलने लगीं
शाख़ों के झूलों पर
स्वर्ण किरणें

नभ में गूँजे
पखेरुओं के स्वर
प्रभात गान


सुधा राठौर

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