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सुनो तुम आ जाओ न

सुनो तुम आ जाओ न

सुनो तुम आ जाओ न
कुछ अपनी भी सुनाओ न
खफ़ा खफ़ा से लगते हो
थोड़ा सही मुस्कुराओ न
यहाँ लोग बातें बनाते हैं
निगाहों को नहीं मिलाओ न
बेख़ौफ़ हम रहते हैं मगर
तुम तन्हा नहीं बुलाओ न
ज़िक्र मेरा हर सू करते हो
कुछ तो राज़ छुपाओ न
पल जो साथ गुज़ारे थे
यूँ उनको नहीं भुलाओ न
रोज़ ख्वाबों में आते जाते हो
मुझे ऐसे नहीं सताओ न
माना कि हमराज़ हैं तुम्हारे
कभी हमसे भी शर्माओ न
मुस्कुराते ही घायल कर देते हो
यूँ बिजली नहीं गिराओ न
चाँद तो प्रतिबिम्ब महबूब का होता
मुझे चाँद में दिख जाओ न
गर ‘चाहत’ है इक नशा
आँखों से मुझे पिलाओ न


नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
झाँसी
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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