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स्वार्थी मत बन बावरे काम करो निःस्वार्थ- रामनाथ साहू ननकी के कुंडलियाँ

स्वार्थी मत बन बावरे काम करो निःस्वार्थ

स्वार्थी मत बन बावरे , काम करो निःस्वार्थ ।
शुद्ध भाव से कीजिए , जीवन में परमार्थ ।।
जीवन में परमार्थ , बैरता बंधन खोलो ।
बस मीठे शुचि बोल , सदा सबसे तुम बोलो ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , कर्म बस करो हितार्थी ।
परहित की ही सोच , कभी मत बनना स्वार्थी ।।

स्वार्थी कहकर तोड़ दी , बने हुए सम्बंध ।
हाय नियति ये क्या हुआ , उभरे सारे संध ।।
उभरे सारे संध , दूरियाँ बढ़े निरंतर ।
सिसके अब अरमान , नफरतें बैठी अंदर ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,कभी जो थे परमार्थी ।
पुकारते है आज , नाम लेकर वो स्वार्थी ।।

स्वार्थी सब संबंध हैं , बस मतलब के यार ।
सिर्फ़ दिखावा ही लगे , झूठे हैं व्यवहार ।।
झूठे हैं व्यवहार , बनाते केवल उल्लू ।
रखते हैं नजदीक , मतलबी अपने चूल्लू ।।
कह ननकी कवि तुच्छ , एक दूजे के प्रार्थी ।
सब दिखता प्रत्यक्ष , कौन है कितना स्वार्थी ।।


~ रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह

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