उपमेंद्र सक्सेना – मुहावरों पर कविता

उपमेंद्र सक्सेना - मुहावरों पर कविता नैतिकता का ओढ़ लबादा, लोग यहाँ तिलमिला रहे हैं और ऊँट के मुँह में जीरा, जाने कब से खिला रहे हैं। आज कागजी घोड़े…

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