Tag: संस्कृति

  • तन्नक सुपारी हमें दैयो

    तन्नक सुपारी हमें दैयो

    तन्नक सुपारी हमें दैयो

    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल ,
    बढई भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा मंगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    लोहार भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    कसार भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा में पीतल के घुँघरू लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    सुनार भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा में पीतल के घुँघरू में सोने की लड़ियाँ लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    जोहरी भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा में पीतल के घुँघरू में सोने की लड़ियों में हीरे और मोती लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    • संकलित
  • मुहर्रम की याद

    मुहर्रम की याद

    मुहर्रम इस्लामी वर्ष का पहला महीना होता है और यह इस्लामी समुदाय के लिए एक विशेष महत्व रखता है, खासकर शिया मुसलमानों के लिए। यह महीना कर्बला के शहीदों की याद में मनाया जाता है, जिसमें इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का विशेष रूप से जिक्र होता है। मुहर्रम के समाप्त होने पर यह कविता उस त्याग, बलिदान और समर्पण की भावना को दर्शाती है:

    मुहर्रम की याद

    मुहर्रम की याद

    मुहर्रम का महीना आया,
    यादों की घटा छाई है,
    कर्बला की वो गाथा सुनकर,
    हर आँख अश्रु से भर आई है।

    इमाम हुसैन की शहादत,
    सच्चाई की आवाज़ थी,
    जालिम के आगे न झुकना,
    उनकी यही परंपरा खास थी।

    धर्म की रक्षा, सच्चाई का संग,
    कर्बला में दिखा अदम्य उमंग,
    प्यासे रहकर भी ना झुके,
    हुसैन ने सत्य की राह चुने।

    कटा सर, फिर भी न झुकी,
    उनके साहस की ये कहानी,
    धर्म और इंसाफ की खातिर,
    दी अपनी कुर्बानी।

    मुहर्रम का महीना गुजरा,
    पर यादें फिर भी साथ हैं,
    हुसैन के उस बलिदान की,
    हर दिल में बसी सौगात है।

    आओ सब मिलकर याद करें,
    उन वीरों की कुर्बानी को,
    सच्चाई और हक की राह पर,
    चलें उनके जज़्बे की निशानी को।


    यह कविता इमाम हुसैन और उनके साथियों के साहस और बलिदान को याद करती है, जो हमें सत्य और न्याय के लिए खड़े रहने की प्रेरणा देती है। मुहर्रम का महीना हमें इस बात की याद दिलाता है कि सत्य और न्याय के लिए किसी भी प्रकार की कुर्बानी दी जा सकती है।