गोवर्धन पूजा
मात देवकी लाल की, लीला है अनमोल।
बचपन से मोहित किए, उनकी मीठी बोल।।
राधे के प्रियतम हुए , मीरा के हैं नाथ।
ग्वाल बाल के बन सखा, देते भक्तों साथ।।
मात पिता रक्षक बने, वासुदेव के लाल।
दुष्ट कंस संहार कर, बने भक्त प्रतिपाल।।
सेवक बनके गाय का, रूप धरे प्रभु ग्वाल।
गोवर्धन पर्वत उठा, काट इंद्र भ्रम जाल।।
वंदन करना कृष्ण का, करते बेड़ा पार।
कृपा करे प्रभु मोहना, सबका हो उद्धार।।
*~ डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’*
*रायपुर (छ.ग.)*
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गोवर्धन पूजा / डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा
दही हाण्डी का उत्सव
दही हाण्डी भारतीय त्योहारों का एक उल्लासपूर्ण हिस्सा है, खासकर महाराष्ट्र में, जहां इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर प्रस्तुत है एक कविता जो दही हाण्डी के उत्साह, आनंद और सामाजिक एकता को दर्शाती है:
दही हाण्डी का उत्सव
मधुर मिलन का पर्व आया,
दही हाण्डी का उल्लास लाया,
हर गली, हर चौक में सज गई,
खुशियों की मूरत, रंगीन बन गई।सपनों के झूले, नटखट खेल,
भरी धारा से उमड़े हर दिल का मेल,
गांव के हर कोने में बजी बधाई,
रंगों से भरी, खुशियों की दवाई।भक्ति की भावना, नटों की टोली,
हाण्डी के नीचे खड़े सब भूले,
ऊंचाई पर हाण्डी लटकती देखो,
शक्ति और साहस का संगम मिलते देखो।छोटे-छोटे बच्चे, युवा सब लगे,
दीवारों को चढ़कर हाण्डी तक पहुंचे,
पानी की बौछारें, संगीत की धुन,
रंगों की मस्ती, हर दिल में खुशनुमा गुन।मिट्टी की हाण्डी में छुपा है प्रेम,
दही और मिठाई से भरा हर प्रेम,
सामाजिक एकता का ये है प्रतीक,
हर दिल में बसी है खुशी की तरंग।उत्सव का रंग, बधाई का संगीत,
हर चेहरे पर मुस्कान, हर मन में उल्लास,
दही हाण्डी का ये पर्व है खास,
संग मिलकर मनाएं हम, छेड़े खुशियों का गीत।आओ मिलकर मनाएं इस उत्सव को,
हर दिल में भर दें खुशी का रस,
दही हाण्डी की मिठास से सजाएंगे हम,
हर जीवन को दें खुशियों की आस।यह कविता दही हाण्डी के उत्सव की खुशी और उल्लास को प्रकट करती है। यह त्योहार एकता, सामूहिकता, और सामाजिक मिलन का प्रतीक है, जिसमें हर व्यक्ति का भागीदारी और आनंद शामिल होता है।