आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया
भूत बनकर बैताल संग भोले की बारात में जायंेगे
भोले की बरात में नाचेंगे, गायेंगे और खूब धमाल मचाऐंगे।।
‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
हे मेरे भोले, तेरे गले में होगा लिपटा होगा नाग।
जिसको देखकर हर बाराती में लग जायेगी नाचने की आग।।
‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
तू तो बारात में पी जायेगा बिष का प्याला।
और तू बन जायेगा जगत का रखवाला।
‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
हे मेरे शिव शंकर कैलाश पर्वत वाले।
तुम ही बने हो सबके रखवाले।।
‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
भांग पीकर तेरा रूप हो जाये निराला।
तू अपने भक्तों पर हो जाये मतवाला।।
‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
तेरी बरात में सब पर चढ गयी भांग ।
तूने मेरी सबके सामने भर दी माँग।।
‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
पीकर भांग तूने जमा लिया, बरात में अपना रंग
आज तो मैं साथ जाऊँगी तेरे ही संग।।
‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
अगर तेरे भक्तों को मिल जाये तेरे चरणों की धूल।
फिर मैं तुमको कभी नहीं पाऊँगी भूल।।
‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
जिसने भी मेरे भोले पर बेलपत्र और घतूरा चढ़ाया।
उसका इस संसार में कोई भी कुछ भी न बिगाड़ पाया।।
‘‘आया रे आया मेरे भोले का त्यौहार आया’’
धर्मेन्द्र वर्मा (लेखक एवं कवि)
जिला-आगरा, राज्य-उत्तर प्रदेश