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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०नीलम सिंह के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • विश्वास टूटने पर कविता

    विश्वास टूटने पर कविता

    HINDI KAVITA || हिंदी कविता
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    खण्डित जब से विश्वास हुआ है ,
                         मनवा सिहर गया है।
    जीना         दूभर     लगता    जाने
                     क्या क्या गुज़र गया है।
    तिनका तिनका    जोड़   घरौंदा
                  मिल जुल सकल बनाया।
    ख्वाबों ,अरमानों   ने    मिल के
                 पूरा         महल   सजाया ।
    वज्रपात जब हुआ   नियति   का
                जीवन बिखर गया    है ।
    जीना दूभर  लगता  ,        जाने
               क्या क्या गुज़र गया   है।
    आशाएँ  सब धूमिल   लगतीं ,
              कैसे          राह    निकालूँ
    उलझ गये सब   रिश्ते  नाते ,
              कैसे    स्वयं   सम्भालूँ !
    सब्र का बंधन टूट  गया   औ
             सब कुछ बिखर  गया है ।
    जीना दूभर लगता ,     जाने
            क्या क्या गुज़र गया  है !
    खण्डित जब से विश्वास हुआ है
           मनवा        सिहर गया है ।
    जीना   दूभर     लगता  , जाने
           क्या क्या  गुज़र गया  है !!!
      

    नीलम सिंह

  • पर्यावरण दिवस के दोहे

    पर्यावरण दिवस के दोहे

    आज पर्यावरण असंतुलन हो चुका है . पर्यावरण को सुधारने हेतु पूरा विश्व रास्ता निकाल रहा हैं। लोगों में पर्यावरण जागरूकता को जगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है। इसका मुख्य उद्देश्य हमारी प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को देखना है।

    केवरा यदु मीरा के दोहे

    save tree save earth
    Environment day

    1..
    वायु प्रदूषण  कर रहा, पर्यावरण बिगाड़।
    मानव है तो रोप ले, बड़ पीपल के झाड़।।
    2..
    गंग पतित है पावनी, मानव कैसा खेल।
    पर्यावरण बिगाड़ता, भरता कचरा मैल।।
    3..
    पानी तो अनमोल  है, व्यर्थ न  बहने  पाय।
    पर्यावरण बचाय  लो, पंछी प्यास  बुझाय।।
    4..
    देखो तो ओजोन  में, बढ़ता  जाता  छेद।
    पर्यावरण  दूषित  हो, खोल रहा है  भेद।।
    5..
    पीपल बरगद पेड़ को,कर पितुवत सम्मान।
    पर्यावरण  सुधार  लो , होंगे   रोग  निदान।।
    6..
    नीम पेड़ है  आँवला, औषधि का भंडार।
    पर्यावरणी  शुद्धता, मिलती शुद्ध  बयार।।
    7..
    नहीं आज पर्यावरण, सब दूषित हो जाय।
    पेड़ लगायें नीम  का, रोग  पास  ना आय।।
    8..
    गोबर के ही खाद से,अन्न फसल उग जाय।
    पर्यावरणी   शुद्धता, जीवन   सुखी  बनाय।।
    9..
    पलक झपकते ये जगत ,कर देगा बरबाद।
    दूषित  हो पर्यावरण, रखना इक दिन याद।।
    10..
    पावन  पुन्य सुकर्म से,करलो पर उपकार।
    छेड़ो  ना  पर्यावरण , सुखी  रहे  परिवार।।
    11..
    परम  पुनीत  प्रसाद  है, पर्यावरण  प्रदान।
    पावन इस वरदान को, व्यर्थ न कर इंसान।।
    12..
    पर्यावरण सुधारना, चाहे सब दिन रात।
    आपा धापी दौड़ में, कभी बने ना बात।।
    13..
    पर्यावरण   बचाइये,  ये   है  बहु  अनमोल।
    रखियो इसे सँभाल के, मानव आँखे खोल।।
    14..
    पवन अनल जल औ मही,सुन्दर है वरदान।
    पर्यावरण  सँवार  के, कर इनकी  पहचान।।
    15..
    परम मनोहर जन्म को ,सुख में चाह बिताय।
    पर्यावरणी  रोक  ले, नित नव  पेड़  लगाय।।
    रचना:-
    श्रीमती केवरा यदु मीरा
    राजिम,जिला-गरियाबंद(छ.ग.)

    नीलम सिंह के दोहे

    पर्यावरण बचाइए ,लीजै मन संकल्प।
    तभी स्वास्थ्य, समृद्धि है ,दूजा नहीं विकल्प।।
    प्रकृति देती है सदा ,जन जीवन व्यापार।
    क्षणिक लोभवश ये मनुज,करता अत्याचार।।
    धुआँ-धुआँ सब हो रहे ,यहाँ नगर अरु गाँव।
    बात पुरानी सी लगे ,शीतल बरगद छाँव।।
    नित नित बढ़ती जा रही मानव मन की भूख।
    हर पल ये ही चाह है ,कैसे बढ़े रसूख।।
    झूठी है संवेदना ,झूठा है विश्वास।
    नारे लगने से कभी ,होता नहीं विकास।।
    त्राहि-त्राहि है कर रही,माँ गंगा की धार।
    बाँध बनाना बंद कर, करती करुण पुकार।।
        नीलम सिंह

    आज पर्यावरण एक जरूरी सवाल ही नहीं बल्कि ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है लेकिन आज लोगों में इसे लेकर जागरूकत है। ग्रामीण समाज को छोड़ दें तो भी महानगरीय जीवन में इसके प्रति खास उत्सुकता नहीं पाई जाती। परिणामस्वरूप पर्यावरण सुरक्षा महज एक सरकारी एजेण्डा ही बन कर रह गया है। जबकि यह पूरे समाज से बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध रखने वाला सवाल है। जब तक इसके प्रति लोगों में एक स्वाभाविक लगाव पैदा नहीं होता, पर्यावरण संरक्षण एक दूर का सपना ही बना रहेगा।

    पर्यावरण पर दोहे

    प्रकृति सृजित सब संपदा, जनजीवन आधार।
    साधे सुविधा सकल जन ,पर्यावरण सुधार।।1।।

    जीवन यापन के लिये,शुद्ध हवा जलपान।
    पर्यावरण रक्षित है ,जीव जगत सम्मान।।2।।

    धरती, गगन, सुहावने,  पावक  और समीर।
    पर्यावरण शुद्ध रहे , रहो सदा गंभीर।।3।।

    विविध विटप शोभा बढी, सघन वनों के बीच।
    पर्यावरण है सुरक्षित, हरियाली के बीच।।4।।

    रहे सुरक्षित जीव पशु, वन शोभा बढ जाय।
    शुद्ध पर्यावरण रहे,  सकल व्याधि मिट जाय।।5।।

    बारिद बरसे समय पर, ऊखिले खेत खलिहान।
    पर्यावरण सुहावना, मिले कृषक को मान।।6।।

    पर्यावरण रक्षा हुई, प्रण को साधे शूर।
    धरती सजी सुहावनी,मुख पर चमके नूर।।7।।

    पेड़ काट बस्ती बसी ,पर्यावरण विनाश।
    बढा प्रदूषण शहर में,कैसे लेवे सांस।।8।।

    गिरि धरा के खनन में,बढा प्रदूषण आज।
    पर्यावरण बिगड़ गया, कैसे साधे काज।।9।।

    संख्या अगणित बढ गई , वाहन का अति जोर।
    पर्यावरण बिगड़ रहा   , धुँआ घुटा चहुँओर।।10।।

    ध्वनि प्रदूषण फैलता, बाजे डी.जे.ढोल।
    दीन्ही पर्यावरण में, कर्ण कटु ध्वनि घोल।।11।।

    पर्यावरण बिगाड़ पर, प्रकृति बिडाड़े काज।
    अतिवृष्टि व सूखा कहीं, कहीं बाढ के ब्याज।।12।।

    दूषित हो पर्यावरण, फैलाता है रोग।
    शुद्ध हवा मिलती नहीं, कैसे साधे योग।।13।।

    जन जीवन दुर्लभ हुआ,छाया तन मन शोक।
    पर्यावरण बिगाड़ पे,कैसे लागे रोक।।14।।

    चेत मनुज हित सोचले, पर्यावरण सुधार।
    रक्षा मानव जीव की, पर्यावरण सुधार।।15।।