तांका एक प्राचीन जापानी काव्य विधा है जो संक्षिप्त और संरचित रूप में गहन भावनाओं और विचारों को व्यक्त करती है। यह विधा पाँच पंक्तियों में लिखी जाती है, और प्रत्येक पंक्ति में निर्धारित मात्रा होती है। तांका का शाब्दिक अर्थ “लघु गीत” या “छोटा गीत” होता है। इसे “वाका” के रूप में भी जाना जाता है।
संरचना:
तांका की संरचना निम्नलिखित प्रकार की होती है:
- पहली पंक्ति में 5 मात्राएँ (syllables)
- दूसरी पंक्ति में 7 मात्राएँ
- तीसरी पंक्ति में 5 मात्राएँ
- चौथी पंक्ति में 7 मात्राएँ
- पाँचवीं पंक्ति में 7 मात्राएँ
तांका काव्य विधा पर रचनायें
1
धुंध के फाहे
भोर में सैर करे
छल्ले उड़ाते
सूर्य काँपते आते
दुल्हन सी शर्माते ।।
2
बर्फ से ढँके
झील मैदान बने
पुस का दम
श्वेत कर्फ़्यू लगा के
शीत देता पहरे ।।
3
शीत की बाड़ी
गाजर , मूली , गोभी
बड़ी सुहाती
धुंध , ओस भी पाले
पुस बड़ी मायावी ।।
तांका की विशेषताएँ:
- संक्षिप्तता: तांका में बहुत ही संक्षेप में भावनाओं को व्यक्त किया जाता है।
- प्राकृतिक चित्रण: तांका में अक्सर प्रकृति, मौसम, और प्राकृतिक दृश्य का वर्णन होता है।
- गहन भावनाएँ: यह काव्य विधा गहरी और सूक्ष्म भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम होती है।
- स्वर और लय: तांका में एक विशेष लय और ध्वनि होती है, जो इसे संगीतात्मक बनाती है।
तांका का ऐतिहासिक महत्व:
तांका काव्य विधा जापानी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह जापान के प्राचीन काल से लेकर आज तक लोकप्रिय रही है। इसका उपयोग शाही दरबार से लेकर आम जनता के बीच हुआ है। तांका ने जापानी साहित्य को समृद्ध किया और इसे एक विशेष पहचान दी।
निष्कर्ष:
तांका काव्य विधा अपनी संक्षिप्तता, संरचना, और गहन भावनाओं को अभिव्यक्त करने की क्षमता के कारण विशेष स्थान रखती है। यह जापानी संस्कृति और साहित्य की अमूल्य धरोहर है, जो हमें कम शब्दों में अधिक कहने की कला सिखाती है।