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तीन कविताएं

तीन कविताएं

                        1
बाहें फैलाये
मांग रही दुआएँ,
भूल गया क्या
मेरी वफ़ाएँ!
ओ निर्मोही मेघ!
इतना ना तरसा,
तप रही तेरी वसुधा
अब तो जल बरसा!

                       2
बूंद-बूंद को अवनी तरसे,
अम्बर फिरभी ना बरसे!
प्यासा पथिक,पनघट प्यासा
प्यासा फिरा, प्यासे डगर से!
प्यासी अँखिया पता पूछे,
पानी का प्यासे अधर से!
बूंद-बूंद को अवनी तरसे
अम्बर फिरभी ना बरसे!

                     3
प्रदूषण से कराहती,
शांत हो गई है!
कहते हैं नदी अपना
पानी पी गई है!
चंचल थी बहुत,
उदास हो गई है!
नक्शे में जाने कहाँ
अब खो गई है!
नदी शांत हो गई है!
बादलों की ओर,
आस लगाये रहती है,
कलकल बहती थी,
अब धूल उड़ाया करती है!
प्यासी बरसातें उसकी,
उम्मीदें धो गई हैं!

नदी शांत हो गई है!

डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
अम्बिकापुर(छ. ग.)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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