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तुम्हारे बिन ये ज़िंदगी

तुम्हारे बिन ये ज़िंदगी

kavita

तुम्हारे बिन ज़िंदगी अधूरा सफ़र लगता है।
चांदनी रात की पहर भी जैसे तपती दोपहर लगता है।
खिलते है फूल बागों में बहुत।
मगर तुम्हारे बिन अब इन फूलो की खुशबू भी बेअसर लगता है।
यूं तो कभी मैं ज़िंदगी और मौत से नही डरता।
मगर तुम्हारा हाथ और साथ ना छूट जाए

इसको सोचकर खुदा की क़सम बड़ा डर लगता है।
किसी को चांद तो किसी को सितारे और

किसी को पारियों की रानी अच्छी लगती है।
मुझसे पूछ मेरी जान मुझे तो सिर्फ़ अच्छा तेरा शहर लगता है।
ये ज़माना तारीफ़ करता है अक्सर किसी एक इंसान की।
मैं जिस जिस से सुनता हूं अपनी मुहब्बत की कहानी,

मुझे अच्छा हर वो बशर लगता है।
अक्सर दिए जाते है मुहब्बत में गुलाब।
दिए है तबरेज़ ने फ़ूल ए गुलमोहर तेरे गज़रे के लिए ,

तेरे गज़रे में ये अच्छा फ़ूल ए गुलमोहर लगता है।

तबरेज़ अहमद
बदरपुर नई दिल्ली

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