वक़्त बेवक्त जिन्दगी- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

इस रचना में जिन्दगी की भागमदौड़ को चित्रित किया गया है साथ ही जिन्दगी किस मोड़ पर आ खड़ी हुई है इसे भी इस रचना की विषयवस्तु बनाय गया है |
वक़्त बेवक्त जिन्दगी- कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

घड़ी

वक़्त बेवक्त जिन्दगी- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

वक़्त बेवक्त जिन्दगी के
मालिक हो गए हैं हम

खिसकती , सरकती , सिसकती जिन्दगी के
मालिक हो गये हैं हम

ध्यान से हमारा नाता नहीं है
धन की लालसा से बांध गए हैं हम

संस्कृति के पालक नहीं रहे हम
आधुनिकता के बवंडर में खो गए हैं हम

संस्कारों की बेल के फूल न होकर
कुविचारों की शरण हो गए हैं हम

योग की लालसा रही नहीं हमको
पब और जिम की शरण हो गए हैं हम

दोस्ती पर विश्वास रहा नहीं हमको
अकेलेपन के शिकार हो गए हैं हम

सत्संग की शरण न होकर
टी वी मोबाइल के पीछे भाग रहे हैं हम

मोक्ष का विचार तो था मन में
हर पल मर मरकर जी रहे हैं हम
वक़्त बेवक्त जिन्दगी के
मालिक हो गए हैं हम

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