वाल्मीकि जयंती पर कविता

वाल्मीकि जयंती पर कविता: सनातन धर्म में महर्षि वाल्मिकी को प्रथम कवि मनाया गया। दूसरी ओर महान ग्रंथ रामायण की रचना थी। वाल्मिकी जयन्ती महर्षि के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है।

एक भगवान् आप

o आचार्य मायाराम ‘पतंग’

एक भगवान् आप थे मानव महा

मृत्तिका का ढेर अपने शीश पर कैसे सहा ?

आह अपना तन किया तरु का तना

चींटियों ने घर लिये जिस पर बना

किंतु तिल भी डगमगाए तुम नहीं

भुनभुनाए, तमतमाए तक नहीं

हे स्थिर मना सुदृढ़ तन

पर बहुत कोमल मन

सहज संवेदना आपने देखा

लगा यह बाण हरने प्राण

हा ! उस क्रौंच को पापी बधिक ने

दे दिया दुःख गहन बिन अपराध के

‘सुख न पाएगा कभी’ मन कह गया

दुर्भाग्य के दिन आ गए उस व्याध के

तुम कह गए या स्वयं करुणा स्रोत से तुम बह गए।

तड़पती क्रौंचनी-सी ही प्रखर गहरी चुभन मन में उठी

तड़पन तुम्हारे सहज मुनिवर

और व्याकुलता हुई अभिव्यक्त रामायण रची फिर आपने

हो गए हम आज बिलकुल शून्य ही संवेदना से हीन

सब कुछ आज है प्रतिकूल

होती रोज हत्या, लूट

सबको मिल गई छूट

पशु-पक्षी बचाए कौन ?

गिनती मानवों की ही नहीं होती

कि कितने मर गए? मारे गए कितने ?

न कोई पूछता है अब कहाँ कितने लूटे ? कितने पिटे ?

अब हर गली में ही व्याध

प्रतिदिन कर रहे अपराध

हम सब देखते हैं पर न कोई उठ रही संवेदना

बस सो गया अंत:करण मृत हो गया मन

हाय ! हे ऋषिवर हमारा !

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