वंसुधरा पर कविता

वंसुधरा पर कविता

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दिन प्रतिदिन कटते जा रहे हैं 
वन्य पेड़ झाड़ियॉ
प्रदुषण की ललकार ने
पैरो में डाल दी रोगो की बेड़िया 
घुटते जा रहे हैं इंसान
अपने कर्म की अठखेलियो से
पेड़ को काटकर…..
उजाड़ रहे हैं परिन्दो के खरौदे
भूमण्डल में गजब का हलचल छाया हैं
आने वाला साल मौत फरमाया हैं
यू काटते रहें पेड़ तो
अस्तित्व खत्म हो जायेगा
धरा भी धीरे – धीरे त्रिण हो जायेगा
इंसान अपने ही स्वार्थ से
जीवन को खतरे में डाल रहा
चेहरे की हँसी सिमट सी गयी
भोर की हवा थम सी गयी
प्रदुषण के मार से
धरा पर तापमान बढ़ सा गया 
एक कदम बढ़ाना ही होगा हम सभी को
विरान वंसुधरा को हरा भरा बनना ही होगा

          महेश गुप्ता जौनपुरी
     मोबाइल – 9918845864

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