ब्रह्मचर्य का सत्य- मनीभाई नवरत्न

ब्रह्मचर्य का सत्य- मनीभाई नवरत्न

ब्रह्मचर्य का सत्य

ब्रह्मचर्य कोई व्रत नहीं, न ही वस्त्र का नाम,
यह तो है आत्मा की भाषा, अंतर का काम।
निरंतर ध्यान की धारा, ना केवल संयम का रूप,
यह तो है चेतना की चोटी, जहां मिले अनूप।

कामनाओं के जाल में, जो न उलझे मन,
वही तो ब्रह्मचारी है, पा गया जो अमन।
नारी-पुरुष का भेद नहीं, आत्मा में एकता,
जहां दृष्टि शुद्ध हो जाए, वहीं सच्ची भव्यता।

समाज के रंगमंच पर, जो नाचते मुखौटे,
सच्चे साधक जानते हैं, सत्य के असली रस्ते।
विवाह, अकेलापन – यह तो हैं बस आवरण,
चरित्र वही पावन है, जो करे आत्म निरीक्षण।

आकर्षणों से हिल न जाए, जो धैर्य की चट्टान,
वह साधक कहलाए सच्चा, वही बने प्रमाण।
ना नकारे भावना को, ना हो तृष्णा का शिकार,
बस समझे भाव की जड़ें, यही आत्म-संसार।

ब्रह्मचर्य है प्रकाश वह, जो भीतर से जले,
ना कोई दिखावा उसमें, ना दिखावटी चले।
नारी हो या नर कोई, सबका लक्ष्य समान,
अंतर में हो दीप जले, मिले प्रभु का ज्ञान।

ना साधना बाहरी, ना ही कोई बंधन,
अंतर्यात्रा में जो चले, वही पाए दर्शन।
त्याग नहीं, बल्कि समझ है, इस पथ की बुनियाद,
ब्रह्मचर्य वह पुल है, जो दिलाए प्रभु का साथ।

  • मनीभाई नवरत्न