पर्यावरण को नुकसान पर कविता /एस के कपूर श्री हंस

पर्यावरण को नुकसान पर कविता /एस के कपूर श्री हंस

1

नदी ताल में कम हो  रहा जल 

हम पानी यूँ ही बहा रहे हैं।

ग्लेशियर पिघल रहेऔर समुन्द्र

तल यूँ बढ़ते ही जा रहे हैं।।

काट    सारे वन कंक्रीट के कई

जंगल बसा दिये विकास ने।

अनायस विनाश की ओर कदम

दुनिया के चले  जा  रहे हैं।।

2

पॉलीथिन के ढेर पर  बैठ     हम

पॉलीथिन हटाओ नारा दे रहे हैं।

प्रक्रति का शोषण कर के सुनामी

भूकंप का अभिशाप ले  रहे  हैं।।

पर्यवरण प्रदूषित हो रहा दिनरात

हमारी आधुनिक संस्कृति कारण।

भूस्खलन, गर्मी, बाढ़  ,ओला वृष्टि

नाव बदले में आज हम खे रहे हैं।।

3

ओज़ोन लेयर छेद,कार्बन उत्सर्जन

अंधाधुंध दोहन दुष्परिणाम है।

वृक्षों की कटाई बन गया आजकल

विकास प्रगति  दूसरा नाम है।।

हरियाली  समाप्त करने  की  बहुत

बडी कीमत चुका रही दुनिया।

इसी कारण ऋतुचक्र,वर्षाचक्र नित

असुंतलनआज हो गया आम है।।

4

सोचें क्या देकर  जायेंगे  हम  अपनी 

अगली  पीढ़ी  को  विरासत में।

शुद्ध जल और वायु को ही कैद  कर

दिया जीवनशैली  हिरासत में।।

जानता  नहीं  आदमी  कि कुल्हाड़ी

पेड़  नहीं पाँव पर चल रही है।

प्रकृति नहीं सम्पूर्ण  मानवता  नष्ट हो

जायेगी  दानवी हिफाज़त में।।

एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

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