कन्या पूजन या भ्रूणहत्या -राकेश सक्सेना

प्रस्तुत कविता का शीर्षक - "कन्या - पूजन या भ्रूण हत्या" समाज के उन लोगों से सवाल है जो एक तरफ तो देवी स्वरूपा कन्या का पूजन करते हैं वहीं अपने परिवार में बेटी होने का दुःख मनाते हैं। इसी विषय वस्तु को आधार मानकर रची गई है।

कन्या पूजन या भ्रूणहत्या -राकेश सक्सेना

राम कथा, रामायण जी, सुनकर दिल भर आता है,
रामराज्य की कल्पना से ही, मन हर्षित हो जाता है।
काश मर्यादापुरुषोत्तम सी, मर्यादा हर पुरुषों में होती,
तो हर स्त्री सुरक्षित होती, धरा पवित्र मर्यादित होती।।

कुछ रावणवंशी मर्दों ने, पुरूषों की इज्जत बिगाड़ी है,
सुर्पणखां मंथरा सी, महिलाओं की लिस्ट भी भारी है।
लक्षमण, भरत से भाई जिसके हैं, वो नसीबों वाले हैं,
हनुमानजी जैसे समर्पित दोस्त, मिलें तो वारे-न्यारे हैं।।

नवदुर्गा नवरात्रि को हम, व्रत उपवास कर मनाते हैं,
रामलीला कर देश भर में, राममयी माहौल बनाते हैं।
कन्यापूजन चरणवंदन से, महिला का मान बढ़ाते हैं,
वहीं कुछ ना समझ, कन्या भ्रूण हत्या भी करवाते हैं।।

कब समझेंगे बिना महिला हम, बंजर भूमि समान हैं,
महिला बिना पुरुष जग में, बिन नाथा बैल समान है।
आज नवरात्री पर शपथ ले लें, भ्रूणहत्या हम रोकेंगे,
कन्याजन्म पर उत्सव हो, महिला अपमान भी रोकेंगे।।


राकेश सक्सेना
बून्दी, राजस्थान
9928305806

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