नरेंद्र वैष्णव जी का “सावन के दोहे”” काव्य विशेष रूप से उनकी कविताओं में एक प्रमुख पहलू हैं। वे उत्तर भारतीय संस्कृति और भारतीय जीवन-दर्शन को अपनी कविताओं में प्रकट करने वाले प्रमुख कवि रहे हैं।
सावन के दोहे/ नरेन्द्र वैष्णव “सक्ती”
बारिश की यादें लिए , सिसके सावन देख ।
वर्णन करना चाहता , काव्य सजा कवि लेख ।।
बीत रहा चौमास है , नीर बिना बेहाल ।
कहीं-कहीं वर्षा अधिक , संग उतारे काल ।।
रूठा सावन कह रहा , मैं जीवन पट चीत ।
कोई क्रंदन कर रहा , कोई गाता गीत ।।
साजूँ अवनि सुजानिए , अनुपम प्रेम प्रगाढ़ ।
रूठा सावन कह चला , काल रूप मैं बाढ़ ।।
सूखी भू छत्तीसगढ़ , विस्मित सावन देख ।
लोग कहें कर प्रार्थना , बनो नहीं अब मेख ।।
ले आओ काली घटा , हे सावन मनमीत ।
व्योम-धरा पथ नृत्य से , साज दामिनी प्रीत ।।
सावन की शुभ पूर्णिमा , दे जाना सौगात ।
प्यारे सावन भ्रात तुम , करना शुभ बरसात ।।
(नरेन्द्र वैष्णव “सक्ती”)
छत्तीसगढ़