शाकाहार पर दोहे/ नीरामणी श्रीवास नियति
दोहा – शाकाहारी
उत्तम हो आहार जब, देह पुष्ट हो जान।
अनुचित भोजन से सदा, बिगडे तन का मान।।
भोजन से ही जानिए, बनता मनुज स्वभाव।
शाकाहारी भोज्य से, रखिए सदा लगाव।।
शेर माँस खाकर सदा, गुर्राता है नित्य।
नित निरीह पशु की करे, हत्या वाला कृत्य।।
शाकाहारी जीव का, रहता शांत स्वभाव।
मांसाहारी भोज्य से, करता सदा दुराव।।
हरी सब्जियों से मिले, पोषक तत्व हजार।
इसी लिए सब संत जन, रहते शाकाहार।।
असुर वृत्ति के लोग ही, करते मांसाहार।
आतुर लड़ने के लिए, रहते हैं तैयार।।
शाकाहारी भोज्य है, सर्वोत्तम आहार।
करे संतुलित देह को, मिले पुष्ट आकार।।
सभी प्राणियों के लिए, निर्धारित आहार।
फिर क्यों मांसाहार से, करे मनुज नित प्यार।।
शाकाहारी ही बनो, यही प्रकृति की देन।
इनसे हटकर जो चले, रहता है बेचैन।।
मांसाहारी लोग नित, हत्या करते जीव।
उनके इसी कुकृत्य से, मिलते कष्ट अतीव।।
नीरामणी श्रीवास नियति
कसडोल छत्तीसगढ़