खूबसूरत है मग़र बेजान है / रेखराम साहू

खूबसूरत है मग़र बेजान है

खूबसूरत है मग़र बेजान है,
ज़िंदगी से बुत रहा अनजान हैं।

बेचता ताबीज़ है बहुरूपिया,
है वही बाबा, वही शैतान है।

माँगता है,शर्त रखता है कभी,
‘प्यार का दावा’, अभी नादान है ।

रूह की कीमत बहुत नीचे गिरी,
खूब मँहगा हो गया सामान है।

है किशन का भक्त,इस पर शक उसे,
कह रहा है,” नाम तो रसखान है “।

दर्द को मज़हब मुताबिक बाँटकर,
हो रहा गुमराह क्यों इंसान है।

मानता संसार को परिवार जो,
दोस्त! ऐसा देश हिन्दुस्तान है।

प्यार के घर की छतें उड़ने लगीं,
नफरतों का इस क़दर तूफ़ान है।

क्यों अमन के गीत अब ख़ामोश हैं!
गूँजता बस ज़ंग का ऐलान है।

*रेखराम साहू