गीत अब कैसे लिखूं
स्वप्न आंखों में मरे हैं,
पुहुप खुशियों के झरे हैं,
गीत अब कैसे लिखूं।।
सूखती सरिता नयन की,
दिन फिरे चिंतन मनन की।
अब निभाता कौन रिश्ता,
सात जन्मों के वचन की।।
प्रिय जनों के साथ छूटे,
शेष अपने वही रूठे।
गीत अब कैसे लिखूं।।
हसरतों के झरे पत्ते,
वृक्ष से उघरे हुए हम।
कर तिरोहित पुण्य पथ को,
धूल से बिखरे हुए हम।।
अनकही सी भावना पर,
मौन मन की कामना पर।
गीत अब कैसे लिखूं।।
देह गलती जा रही है,
उम्र ढलती जा रही है।
जिंदगी से जूझने की,
साध पलती जा रही है।।
हो चला विश्वास बंदी,
प्रेम में हो रही मंदी।
गीत अब कैसे लिखूं।।
हादसों के ढेर पर अब,
काल के इस फेर पर अब।
छद्म वाले आचरण के,
हैं धुले से संस्मरण पर।
मुफलिसी के हाल पर मैं,
सितमगर के जाल पर मैं।
गीत अब कैसे लिखूं।।
संतोषी महंत “श्रद्धा”
कोरबा(छ.ग.)