अकड़ पर कविता

अकड़ पर कविता

जीवन के इस उम्र तक
ना जाने कितने मुर्दे देखे।
  कितनो को नहलाया
   तैयार भी किया
और पाया
    केवल अकड़
सचमुच मुर्दो में अकड़ होती है
  लेकिन जीते जी इंसान
   क्यूं दिखाते है अकड़
         क्या वे मुर्दे के समान है
         या यही उनकी पहचान है
मरना तो सब को है
फिर अकड़ अभी से क्यूं??
   जियो जी भर के
   प्यार से नाजुकता से।
निभा लो रिश्ता
     दुलार से अपनेपन से,
फिर तो विदा होना है,
  संसार से,
सभी रिश्तों नातों से
और उसी दिन दिखा देना
     अपनी अकड़।

*मधु गुप्ता “महक”*

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *