अपना प्यारा गाँव
मिल जुलकर रहते सब लोग,,
सत्य अहिंसा का आज भी प्रयोग,,
अब भी बुजुर्गों को ही जानते हैं,,
बस उन्हीं का फैसला मानते हैं,,
एक दूसरे का साथ निभाते
कभी न करते हैं छलाँव।
यही है अपना प्यारा गाँव,
यही है अपना न्यारा गाँव ।।
धान और गेहूँ के लहलहाते पौधे,
मिट्टी के अनुपम घरौंदे ,,
सरसों के फूल उन्मुक्त पवन,,
फूलों से सजा मनमोहक उपवन,,
और वो बूढ़ा बरगद का छाँव।
यही है अपना प्यारा गाँव,
यही है अपना न्यारा गाँव ।।
खलिहानो में अनाजों का अंबार,,
बैलों से दमाही वाला खरपतवार,
गाँव की छोरियों का स्कूल को जाना,,
प्यासे मुसाफिरों को पानी पिलाना।
पंछियो को भी पानी पीने को,
देखो बना है ढेरों पियाव।
यही है अपना प्यारा गाँव,
यही है अपना न्यारा गाँव ।।
गाँव के मंदिर में होता कीर्तन,,
सब कुछ भूल खो जाता है मन,,
आम,अमरूद के लदबदे वृक्ष,,
पंछियो का बसेरा हैं सभी वृक्ष,,
गोरी की छमछम करता पाँव।
यही है अपना प्यारा गाँव,
यही है अपना न्यारा गाँव ।।
✍बाँके बिहारी बरबीगहीया