Author: कविता बहार

  • काग चील हँस रहे

    काग चील हँस रहे

    kavita

    गीत ढाल बन रहे
    .स्वप्न साज ढह गए
    . पीत वर्ण पेड़ हो
    . झूलते विरह गये

    देश देश की खबर
    . काग चील हँस रहे
    . मौन कोकिला हुई
    . काल ब्याल डस रहे
    . लाश लापता सभी
    मेघ शोक कह गये।
    पीत…………….।।

    शून्य पंथ ताकते
    . रीत प्रीत रो पड़ी
    . मानवीय भावना
    . संग रोग हथकड़ी
    . दूरियाँ सहेज ली
    धूप ले सुबह गये।
    पीत………….।।

    खेत में फसल पकी
    . ले किसान कब दवा
    . तीर विष भरे लिए
    . मौन साधती हवा
    . होंठ सूख कर स्वयं
    अश्रु मीत बह गये।
    पीत……………।।

    देव स्वर्ग में बसे
    . काल दूत डोलते
    . रक्त बीज बो रहे
    . गरल गंध घोलते
    . नव विषाणु फौज के
    खिल रहे कलह नये
    पीत……………..।।
    . °°°°°°°

    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
    बौहरा भवन
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान

  • सूनी सूनी संध्या भोर

    सूनी सूनी संध्या भोर

    सूनी सूनी संध्या भोर

    morning
    प्रातःकालीन दृश्य

    काली काली लगे चाँदनी
    चातक करता नवल प्रयोग।
    बदले बदले मानस लगते
    रिश्तों का रीता उपयोग।।

    हवा चुभे कंटक पथ चलते
    नीड़ों मे दम घुटता आज
    काँप रहा पीला रथ रवि का
    सिंहासन देता आवाज
    झोंपड़ियाँ हैं गीली गीली
    इमारतों में सिमटे लोग।
    बदले…………………।।

    गगन पथों को भूले नभचर,
    सागर में स्थिर है जलयान
    रेलों की सीटी सुनने को
    वृद्ध जनों के तरसे कान
    करे रोजड़े खेत सुरक्षा
    भेड़ करें उपवासी योग।
    बदले………………..।।

    हाट हाट पर उल्लू चीखे
    चमगादड़ के घर घर शोर
    हरीतिमा भी हुई अभागिन
    सूनी सूनी संध्या भोर
    प्राकृत का संकोच बढ़ा है
    नीरवता का शुभ संयोग।
    बदले…………………।।

    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
    बौहरा-भवन सिकंदरा,३०३३२६
    दौसा, राजस्थान,

  • मन भँवरा नर देह

    मन भँवरा नर देह

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    भोर कुहासा शीत ऋतु
    तैर रहे घन मेह।
    बगिया समझे आपदा
    वन तरु समझे नेह।।
    .
    तृषित पपीहा जेठ में
    करे मेह हित शोर
    पावस समझे आपदा
    कोयल कामी चोर

    करे फूल से नेह वह
    मन भँवराँ नर देह।
    भोर……………..।।
    .
    ऋतु बासंती आपदा
    सावन सिमटे नैन
    विरहा तन मन कोकिला
    खोये मानस चैन

    पंथ निहारे गेह का
    याद करे हिय गेह।
    भोर…………….।।

    याद सिंधु को कर रहा
    भटका मन घन श्याम
    नेह नीर के भार को
    ढोता तन अविराम।

    दुख में सुख को ढूँढता
    मन को करे विदेह।
    भोर……………..।।

    गई प्रीत की रीत क्या
    पावन प्रणय विवाद
    देख नया युग नौ दिवस
    रही पुरानी याद

    डूब रहा अलि द्वंद में
    कुसुमित रस संदेह।
    भोर…………….।।

    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
    सिकंदरा,दौसा,राजस्थान

  • नन्हा मुन्ना करे सिफारिश

    नन्हा मुन्ना करे सिफारिश( १६ मात्रिक )

    kavita

    मैं इधर खड़ा,तुम उधर खड़े।
    सब अपने स्वारथ किधर अड़े।
    भावि सुरक्षक बनूँ वतन का,
    नन्हा मुन्ना करे सिफारिश,
    आज नमन की है ख्वाहिश।

    वतन आपका मेरा भी है,
    निज हित चाहे,उनका भी है।
    नही करे जो बात वतन की,
    उनमे कब है सच यह साहस,
    आज नमन की है ख्वाहिश।

    चाहूँ मिलके नमन करें हम,
    करलें याद शहीदों के गम।
    रक्षक अरु पहरेदारों की।
    मिले दूर कर दें हर खारिश,
    आज नमन की है ख्वाहिश।

    सब भूले अपने मतलब में,
    धन वैभव में या मजहब में।
    हम दो दो मिल गाएँ साथी,
    कर दें मनभावों की बारिश,
    आज नमन की है ख्वाहिश।
    . ____
    बाबू लाल शर्मा बौहरा

  • प्रीतम पाती प्रेमरस…

    प्रीतम पाती प्रेमरस ( दोहा-छंद)

    पावन पुन्य पुनीत पल, प्रणय प्रीत प्रतिपाल।
    जन्मदिवस शुभ आपका, प्रियतम प्राणाधार।
    .
    प्रिय पत्नी प्रण पालती, प्राणनाथ पतिसंग।
    जन्मदिवस जुग जुग जपूँ, रहे सुहाग अभंग।।
    .
    प्रियतम पाती प्रेमरस, पाइ पठाई पंथ।
    जागत जोहू जन्मदिन, जगत जनाऊँ कंत।।
    .
    जनमे जग जो जानिए, जन्म दिवस जगभूप।
    प्रिय परिजन परिवार, पर,प्यार प्रेम प्रतिरूप।
    .
    जन्म दिवस शुभकामना, कैसे कहूँ विशेष।
    प्रियतम मैं तुझ में रहूँ, मेरे मनज महेश।।
    .
    प्राणनाथ प्रिय पुरवऊ, पावन पुन्य प्रतीत।
    परमेश्वर प्रतिपालना, पाऊँ प्रियतम प्रीत।।
    .
    पग पग पायलिया पगूँ, पाय पिया प्रति प्यार।
    पल पल पाँव पखारती, पारावर पतवार।।
    .
    पाल पोष प्रतिपाल पहिं, प्राण पियारी प्रीत।
    पावन पावक पाकते ,पाहन प्रेम पलीत।।
    .
    पारावर पारागमन, पाप पुण्य पतवार।
    प्रियवर पोत प्रचारती, प्रभु पाती प्रतिहार।।
    .
    परिजन पाहन पूजते, पर्वत पंथ पठार।
    प्रियतम पद परितोषिए, पाले प्रिय परिवार।।
    .
    प्रीतम पाती प्रेयसी, पढ़त प्यार परिमान।
    पढ़त पीव पलकों पले, प्रीत पिया प्रतिमान।।
    .
    पाहन पारावरन पर, प्रण पाले प्रतिपाल।
    पिया पान परमेश्वरः, पारागमन पताल।।
    .
    पीहर पाक पवित्रता, परधन पंक प्रमान।
    पुरष पराये पातकी, पितर पीर प्रतिमान।।
    .
    पैजनिया पग पहनती, पान परागी पीक।
    पिय पिनाकी पींग पर, पूरव पवन प्रतीक।।
    .
    पारस्परिक परम्परा, प्रियतम पीहर पंथ।
    प्रेम पनाह परिक्रमा, प्रीत प्राण परिपंथ।।
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    बाबू लाल शर्मा “बौहरा” विज्ञ