Author: कविता बहार

  • भारत छोड़ो आंदोलन के वीर

    भारत छोड़ो आंदोलन के वीर

    भारत छोड़ो आंदोलन के वीर

    भारत छोड़ो आंदोलन के वीर

    देख अंग्रेजी हुकूमत की उग्र तानाशाही,
    बूढ़े भारत में फिर से जवानी लौट आई।
    क्रांतिकारी बुद्धिजीवियों का है यह पयाम,
    भारत छोड़ो आंदोलन के वीरों को सलाम।

    अंग्रेजों के अत्याचारों का था ऐसा मंजर,
    कर हुकूमत भोंकते थे भारतीयों पर खंजर।
    महात्मा गांधी के नेतृत्व में सफल हुआ काम,
    भारत छोड़ो आंदोलन के, वीरों को सलाम।

    कोई था हिंदू – मुसलमान कोई था ईसाई,
    वीर भारतीयों से अंग्रेजों ने मुंह की खाई।
    आंदोलन को मिली राह ऐसा था संग्राम,
    भारत छोड़ो आंदोलन के,वीरों को सलाम।

    ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ संघर्ष का था ये नारा,
    आंदोलन के लिए गांधी ने सबको था पुकारा।
    आजादी का गीत गाते सभी सुबह – शाम,
    भारत छोड़ो आंदोलन के,वीरों को सलाम।

    ‘करो या मरो नारा’ का गांधी ने किया आगाज,
    आंदोलन में भाग लिए सभी छोड़ – कामकाज।
    अखिल भारतीय कांग्रेस का हुआ था उत्थान,
    गांधी-मौलाना आजाद का होने लगा गुणगान।
    आंदोलन के वीरों का जुग-जुग रहेगा नाम,
    भारत छोड़ो आंदोलन के, वीरों को सलाम।

    अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ.ग.)पिन – 496440.

  • सुमन! अल्प मधुर तेरा जीवन

    सुमन! अल्प मधुर तेरा जीवन

    kavita

    सुमन! अल्प मधुर तेरा जीवन।
    याद रहेगा      इस जग      को,
    कण-कण घुलना सौरभ बन-बन।

    कितने अलियों ने अभिसिक्त किया,
    मधुर समीरण  सहलाया  दुलराया।
    देकर मिलता है           जग    में,
    मरकर   अमरता का ये अभिनन्दन।

    मुझको ये जग  विस्मृत  कर  देगा,
    मिट जाएगा                  मेरा नाम।
    नहीं दे पाई      में       इस जग को,
    सुमन- सुतन का      तुझसा  दान।

    देना चाहूं     इस जग को         तो,
    क्या दूं   क्या है              मेरे पास।
    अशक्त करों की     अल्प    लेखनी,
    और कविता की           चिर प्यास।

    समय यही है      ले लूं        तुझसे,
    निः शेष में शेष का     अद्भुत ज्ञान।
    इस जग में       लुटा दूं        अपना,
    काब्य- कुसुम का        ये  वरदान।

    साधना मिश्रा, रायगढ़-छत्तीसगढ़

  • बचपन की यादें -साधना मिश्रा

    बचपन की यादें -साधना मिश्रा

    बाल दिवस पर कविता
    बाल दिवस पर कविता

    वो वृक्षों के झूले वो अल्हड़ अठखेलियां।
    वो तालाबों का पानी वो बचपन की नादानियां।

    वो सखाओं संग मस्ती वो हसीं वादियां।
    वो कंचा कंकड़ खेलना वो लड़ना झगड़ना।

    वो छोटा सा आंगन वो बारिश का पानी।
    वो कागज की नाव वो दादी की कहानी।

    याद आती मुझे वो मीठी शरारतें।
    वो खुशदिल तबस्सुम वो ठिठोली की बातें।

    वक्त ने मुझको समझदार है कर दिया।
    सफेद गेसुओं का सौगात दे दिया।

    खो गईं बेफिक्री वो सब्ज शोखियां।
    रह गईं उम्र की वर्जना वंदिशियाँ।

    पर भूलीं नहीं वो बचपन की नादानियां
    वो वृक्षों के झूले वो अल्हड़ अठखेलियां।

    साधना मिश्रा, रायगढ़- छत्तीसगढ़

  • पिरामिड रचना (शबरी ) -साधना मिश्रा

    पिरामिड रचना (शबरी )

    kavita
    shabri

    हैं,
    बेर,
    नहीं ये;
    स्नेह नीर,
    अश्रु- बिंदु हैं;
    समर्पित तुम्हें,
    हे श्री रघुनन्दन!

    दी,
    ज्ञान,
    गुरु ने,
    परिचय,
    पाया पावन;
    तृषित पिपासा,
    पाऊं तेरा दर्शन!
    यूं,
    झुकी,
    कमर,
    विरहिणी;
    अंतर तम,
    आतुर मिलन,
    हे श्यामल बदन!

    ये,
    देखो,
    थकित,
    विगलित,
    अविचलित;
    चिर प्रतिक्षित,
    अपलक नयन!

    की,
    मैंने,
    करुण,
    प्रतीक्षा है;
    अब तो आओ,
    निष्ठुर बनो न,
    हे, स्नेह सदन!

    दो,
    रज,
    चरण,
    सुचि कण
    कृपा सुमन;
    मेरे मस्तक हो,
    हे, पतित पावन!

    साधना मिश्रा, रायगढ़- छत्तीसगढ़

  • भगत सिंह की याद में

    भगत सिंह की याद में

    भगत सिंह

    टपक टपक के आंसुओं का दरिया बन गया
    सितम गम का, समा भी गमगीन हो गया।

    खामोशी बिखरी ,मुर्दों पर ढकी कफ़न लिए
    पर कदम ना थके ना हिम्मत हारी वतन के लिए।

    बढ़ते चले ,इंकलाब कहते चले ,अंग्रेजो की बर्बादी लिए
    भारत भूमि में जन्मे, भगत सिंह दुश्मनों से हमें बचाने के लिए।

    जन्म लिया पंजाब में अमर हुए लाहौर में क्रन्तिकारी बनकर।
    चेतना का बीज बोया लोगो में ,अग्रेजों पे कहर बनकर।

    कह के इंकलाब अपने सांसो का हिसाब कर गए।
    आंखें नम करके सबकी, भारत मां को आजाद कर गए।

    -दीपा कुशवाहा, अंबिकापुर