देश के खातिर हो गया कुर्बान, जुबांँ पर था भारत का गुणगान। पाकिस्तान में जन्मे भारत ने पाला, बचपन में प्यारा नाम था भागोवाला। नित – अथक सभी करें देश का उद्धार, देशवासियों को, भगत सिंह का पुकार।
कोई सिख था कोई हिन्दू- मुसलमान, देश की आजादी के लिए दे दी जान। आज़ादी के लिए भगत जी ने बनाई टोली, गोरों को कर परेशान करते आंँख मिचौली। देश के युवा अन्यायीयों पर भरो हुंकार, देशवासियों को, भगत सिंह का पुकार।
भगत सिंह ने आजादी का जलाया मसाल, साथ में थे सहयोगी लाल, बाल और पाल। भारतीय युवाओं को देख अंग्रेज थे अचंभा, भगत जी ने बनाई जब नौजवान भारत सभा। देशभक्ति न हो जिसमें उसको है धिक्कार, देशवासियों को, भगत सिंह का पुकार।
आंदोलन का लहर था मथुरा हो या काशी, भड़का क्रांति जब हुआ बिस्मिल को फांसी। बेकार न गई लाला लाजपत जी की कुर्बानी, सांडर्स को गोली मारकर आगे बढ़ी ये कहानी। देख अंग्रेजी हुकूमत और विश्व रह गया था दंग, भगत सिंह ने असेम्बली में जब फेंका था बम। जो न करे वतन से मोहब्बत वो है बेकार, देशवासियों को, भगत सिंह का पुकार।
आंदोलन बढ़ता गया रोया था हर भारतवासी, भगत जी, राजगुरु व सुखदेव को हुआ फांसी। ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ जुबां पर था हमेशा वक्त ने आजादी पर खेल- खेला था कैसा। वीर हो गए शहीद था उनका अधिकार, देशवासियों को, भगत सिंह का पुकार।
भारत के इतिहास में महान हो गया एक तारा, जुबां पर था नित ‘इंकलाब जिंदाबाद का नारा’| हिंदुस्तानियों शहीदों ने हमको ये भिख दिया, देश के लिए अपना जीवन वीरों ने लिख दिया। रोको तुम जहाँ पर हो जुल्म-अत्याचार, देशवासियों को, भगत सिंह का पुकार।
15अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ हिंदुस्तान, देश की आजादी के लिए वीरों ने दी है जान। वक्त निकालकर उनका भी कर लो गुणगान, देश के लिए जिन्होंने सब कुछ कर गए दान। होकर जागृत भारत को दो तुम सँवार, देशवासियों को, भगत सिंह का पुकार।
—अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440
पुण्य तिरंगे की रक्षा में, कुछ भी हम कर जाएंगे। शीश कटा देंगे अपना पर, शीश कभी न झुकाएंगे।
★★★★★★★★★★★ आँख दिखाने वालों सुन लो, बासठ का यह देश नहीं। आडम्बर जिसमें होता हैं, वह अपना संदेश नहीं।
बहुत खेल अब खेल चुके हो, केशर वाली घाटी में। सदा सुराख बनाया तुमने, भारत की परिपाटी में।
बदल गया है वक्त हमारा, अब नहीं धोखा खाएंगे। शीश कटा देंगे अपना पर, शीश कभी न झुकाएंगे।
★★★★★★★★★★ समझ गए है हम तो तुम्हारे, अब सारे ही फंदों को। कर प्रयोग आतंक मचाते, गद्दारों जयचंदो को।
बंदूक लेकर आ जाते हो, श्वानों जैसे मरने को। हम भी सीमा में बैठे है, प्राण तुम्हारे हरने को।
भारत माँ की लाज बचाने, हद से गुजर भी जाएंगे। शीश कटा देंगे अपना पर, शीश कभी न झुकाएंगे। ★★★★★★★★★ जितने भी भेदी थे घर में, उन सबको है जेल मिला। पहले ही हम बलशाली थे, उस पर अब राफेल मिला।
अब भी नहीं सुधरे तो तुमकों, देश के वीर सुधारेंगे। सीमा की क्या बात तुम्हारे, घर में घुसकर मारेंगें।
राणा साँगा के वंशज हम, अपना फर्ज निभाएंगे। शीश कटा देंगे अपना पर, शीश कभी न झुकाएंगे। ★★★★★★★★★ याद करो सन संतावन में, आँधी बन जो आई थी। मर्दो से बढ़ कर मर्दानी, रानी लक्ष्मीबाई थी।
निज घोड़ा में बैठ शिवाजी, भाला तीक्ष्ण चलाते थे। अरिदल भाग खड़े होते थे, जब मैदान में आते थे।
इनसे पाई पौरुष से तुम, पर प्रहार कर जाएंगे। शीश कटा देंगे अपना पर, शीश कभी न झुकाएंगे। ★★★★★★★★★★★ रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर” पीपरभावना,बलौदाबाजार(छ.ग.)
किलकारियाँ, खिलखिलाहट, अठखेलियाँ हवा के संग …. हमे बहुत याद आता है। बादलो का गर्जना ,बिजलियों का कड़कना ,और इन्द्रधनुष के रंग…. हमे भी डराता और हसाता है।
तितलियों का उड़ना , भौरो का गुनगुनाना , ये सब ….. तुम्हे भी तो भाता है। सब कुछ था,है ,पर….. रहेगा या नही ,ये नही पता…, बरसो से खड़े रहकर एक ही जगह पर क्या – क्या नही करते,तुम्हारे लिए …
फिर क्यूँ काट देते हो हमे …. क्या नही सताता प्रकृति का भय तुम्हे …. हमारा कराना भले ही तुम तक न पहुँचता हो …. पर पहुँचते है हमारे ऑसू जब बाढ़ बन जाता है क्योंकि हमी तो है जो मिट्टी को जड़ो से थाम कर रखते है ….., हमारी अनुपस्थिति मे …. सूरज की किरणे तुम्हे जलाता है स्वार्थ का असीम पराकाष्ठा ‘मनुष्य’ … उसी को रौंद देता है … जो छाया बन जाता है । उखड़ी हमारी सांसे…… तुम भी जीवित न रह पाओगे, तरस गये पानी के लिए, ऐसे ही सांसो के लिए हाथ फैलाओगे।
परमात्मा ने प्रकृति के रूप मे , जो धन दौलत तुम्हे दिया है सोने ,चांदी ,कागज के टुकडो से , न कभी इसे खरीद पाओगे…..। जी लो खुद …. हमे भी जीने दो , हम न रहेंगे,तो जीवन किससे मांगोगे ? जानते हो हम कौन है ? हाँ….हम “पेड़” हैं जो सिर्फ जीवन देना जानते है हर रूप मे …..हर क्षण। बन्द करो प्रकृति से खिलवाड़ , क्योंकी जब प्रकृति खिलवाड़ करती है असहनीय हो जाता है …..।