Author: कविता बहार

  • गुरु पूर्णिमा पर दोहे

    गुरु पूर्णिमा पर दोहे

    महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते हैं। व्यास जी ने उस युग में इन पवित्र वेदों की रचना की जब शिक्षा के नाम पर देश शून्य ही था। गुरु के रूप में उन्होंने संसार को जो ज्ञान दिया वह दिव्य है। उन्होंने ही वेदों का ‘ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद’ के रूप में विधिवत् वर्गीकरण किया। ये वेद हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं

    गुरु पूर्णिमा पर दोहे

    गुरु पूर्णिमा


    आज दिवस गुरु पूर्णिमा,सुरभित और पवित्र।
    होते  गुरु  सम   देवता,  और   हमारे   मित्र।।

    गुरु महिमा लेखन करूँ,आज कलम की धार।
    मैं अबोध  बालक  प्रभो,कर  लेना  स्वीकार।।

    तेरी  महिमा  श्रेष्ठ है ,जग में  बहुत महान।
    मैं अबोध बालक प्रभो,बना दिया विद्वान।।

    किया ज्ञान की ज्योति से,तम को ईश प्रकास।
    अंधकार  यह गात  में, हदरम  किया उजास।।

    कर्जदार  जग हैं सही ,पाकर के उपकार।
    कृपा आपकी नित रहे,श्रेष्ठ ज्ञान उपहार।।

    *परमेश्वर अंचल*

  • प्रकृति संरक्षण मंत्र-अमिता गुप्ता

    प्रकृति संरक्षण मंत्र-अमिता गुप्ता

    प्रकृति संरक्षण मंत्र-अमिता गुप्ता

    प्रकृति संरक्षण मंत्र-अमिता गुप्ता

    प्रकृति हमारा पोषण करती,
    देकर सुंदर सानिध्य,
    जीवन पथ सुगम बनाती है,
    जीव-जंतु जगत की रक्षा को,
    निज सर्वस्व लुटाती है।

    आधुनिकीकरण के दौर में,
    अंधाधुंध कटाई कर,
    जंगलों का दोहन क्षरण किया,
    खग, विहंग, पशु कीटों का,
    घर-आंगन आश्रय छीन लिया।

    प्रदूषण स्तर हुआ अनियंत्रित,
    प्लास्टिक,पॉलिथिन का उपयोग बढ़ा,
    पोखर,तड़ाग,नद, झीलों का,
    मृदु नीर मानव ने अशुद्ध किया।

    रफ्ता-रफ्ता हरियाली क्षीण हुई,
    प्रकृति असंतुलन में आयी,
    कहीं पड़ा सूखा, कहीं अतिवृष्टि,
    कहीं सांसों को बचाने की मारामारी छाई।

    आओ सब मिल करें एक प्रण,
    प्रकृति संरक्षण मंत्र अपनाना है,
    जागरूक करें अंतर्मन को,
    वसुंधरा को हरा-भरा बनाना है।

    स्वरचित मौलिक रचना
    ✍️-अमिता गुप्ता
    कानपुर,उत्तर प्रदेश

  • प्रकृति और पर्यावरण

    प्रकृति और पर्यावरण

    प्रकृति और पर्यावरण

    Save environment
    poem on trees

    कितनी मनोरम है ये धरती
    प्रकृति औऱ ये पर्यावरण
    कल-कल बहते ये झरने का पानी
    हरी भरी सी धरती और नजारे इंद्रधनुष के।

    कलरव करते गगन में पंछी
    राग सुनाते है जीवन के
    मस्त पवन के झोंके में
    यूँ ही बहते जाते है।

    फूलों से रसपान करने
    आते है कितने भौरे
    घूम-घूम कर कली-कली पर
    देखो कैसे मंडराते है।

    बूंदे भी देखो बारिश की
    सबके मन को भाती है
    धरती को हरा-भरा कर
    दे जाती है जीवन सब को।

    ये धरती कितनी मनमोहक है
    प्राकृत और ये पर्यावरण
    हमको जीवन देने वाली प्राकृत का
    सब को मिलकर संरक्षण करना है।

    अदित्य मिश्रा
    9140628994
    दक्षिणी दिल्ली, दिल्ली

  • हमें जमीं से मत उखाड़ो-अदित्य मिश्रा

    हमें जमीं से मत उखाड़ो-अदित्य मिश्रा

    हमें जमीं से मत उखाड़ो

    हमें जमीं से मत उखाड़ो-अदित्य मिश्रा

    रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।
    रक्तस्राव से भीग गया हूं मैं कुल्हाड़ी अब मत मारो।

    आसमां के बादल से पूछो मुझको कैसे पाला है।
    हर मौसम में सींचा हमको मिट्टी-करकट झाड़ा है।

    उन मंद हवाओं से पूछो जो झूला हमें झुलाया है।
    पल-पल मेरा ख्याल रखा है अंकुर तभी उगाया है।

    तुम सूखे इस उपवन में पेड़ों का एक बाग लगा लो।
    रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।

    इस धरा की सुंदर छाया हम पेड़ों से बनी हुई है।
    मधुर-मधुर ये मंद हवाएं, अमृत बन के चली हुई हैं।

    हमीं से नाता है जीवों का जो धरा पर आएंगे।
    हमीं से रिश्ता है जन-जन का जो इस धरा से जाएंगे।

    शाखाएं आंधी-तूफानों में टूटीं ठूंठ आंख में अब मत डालो।
    रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।

    हमीं कराते सब प्राणी को अमृत का रसपान।
    हमीं से बनती कितनी औषधि नई पनपती जान।

    कितने फल-फूल हम देते फिर भी अनजान बने हो।
    लिए कुल्हाड़ी ताक रहे हो उत्तर दो क्यों बेजान खड़े हो।

    हमीं से सुंदर जीवन मिलता बुरी नजर मुझपे मत डालो।
    रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।

    अगर जमीं पर नहीं रहे हम जीना दूभर हो जाएगा।
    त्राहि-त्राहि जन-जन में होगी हाहाकार भी मच जाएगा।

    तब पछताओगे तुम बंदे हमने इन्हें बिगाड़ा है।
    हमीं से घर-घर सब मिलता है जो खड़ा हुआ किवाड़ा है।

    गली-गली में पेड़ लगाओ हर प्राणी में आस जगा दो।
    रो-रोकर पुकार रहा हूं हमें जमीं से मत उखाड़ो।

    अदित्य मिश्रा

    दक्षिणी दिल्ली, दिल्ली
    9140628994

  • नोनी के लाज

    नोनी के लाज

    नोनी के लाज

    beti

    *देख ले रावण दुशासन, चीर बर तइयार हे….*
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    कोनला बइरी बरोबर, कोन हितवा जान हूँ।
    नातदारी के भरम मा, कोनला पहिचान हूँ।
    कोन पानी में नशा हे, कोन ला मैं छान हूँ।
    देख पाहूँ जब शिकारी, जाल ला मैं तान हूँ।

    *रोज के संसो परे हे, मोह के संसार हे…
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    आजकल के छोकरा हा, नेट ले बीमार हे।
    हाथ मोबाइल धरे हे, जेब ले देवार हे।
    बाँस जइसन हे गठनहा, देख ले खुसियार हे।
    वाह लइका तोर आघू, देवता के हार हे।

    *राधिका जाने नहीं अउ, कृष्ण जैसन प्यार हे…*
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    जान डारे कोख़ बेटी, भ्रूण हत्या में मरे।
    कोख़ ले जब बाँच जाबे, नोच गिधवा कस धरे।
    हाय बेटी के लुटइया, काम ते कइसन करे।
    देख ले कलजुग जमाना, ईशवर ले नइ डरे।

    *रामजी के राज मा अब, घोर अत्याचार हे…*
    *लाज ला कइसन बचावँव, सोच आँसू धार हे…*

    ==डॉ ओमकार साहू *मृदुल* 06/10/2021==