बेटी पर दोहा छंद
बेटी सृष्टि प्रसारणी , जग माया विस्वास।
धरती पर अमरित रची, काया श्वाँसो श्वाँस।।
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बेटी जग दातार भी ,यही जगत आधार।
जग की सेतु समुद्र ये, जन मन देवा धार।।
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बेटी गुण की खान है, त्याग मान बलिदान।
राज धर्म तन तीन का,सत्य शुभ्र अभिमान।।
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बेटी व्रत त्यौहार की, सामाजिक सद्भाव।
कुटुम पड़ोसी जोड़ती,श्रद्धा भक्ति सुभाव।।
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बेटी यसुदा मात सम, कौशल्या सम नेम।
रानी लक्ष्मी सा कहाँ, जन्मभूमि मन प्रेम।।
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बेटी सब न्यौछारती, देश धर्म हित मान।
पीव पूत भ्राता करे ,जन्म जन्म बलिदान।।
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बेटी धुरी विकास की, कुल की खेवनहार।
देश धर्म मर्याद की, सच्ची पालन हार।।
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बेटी हाड़ी रानियाँ, चूँड़ावत सिणगार।
ममतज पन्ना धाय सी, इन्द्रा सी ललकार।।
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बेटी जीजा सम बनो, त्यार करो शिवराज।
मातृभूमि हित जो बने ,छत्रपति महाराज।।
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बेटी खेजड़ली चिपक, रचती अमृता रीत।
वन्य वनज रक्षा करें, प्राणी प्राकृत प्रीत।।
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बेटी रण रजपूत की, पद्मनियाँ चित्तौड़।
जौहर मै कूदे सभी, राज प्राण सब छोड़।।
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बेटी सुर संगीत की, लता सिद्ध शुभ नाम।
आशा जन मन भारती, सुर संगम सरनाम।।
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बेटी पाल बछेन्दरी, पर्वत पर चढ़ि धाय।
रची कल्पना चावला, अंतरिक्ष में जाय।।
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बेटी देश विदेश में , कंचन रही लुटाय।
कुम्भ सुता सीता सरिस, सर्प सरी लहराय।।
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बेटी कर्मेती रची , जौहर पहले पीर।
मातृ भूमि रक्षा हिते, बना हुमायू बीर।।
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बाबू लाल शर्मा “बौहरा”