Tag: *बेटी पर आधारित कविता

  • बिटिया के मुखड़े पर धवल मुस्कान

    बिटिया के मुखड़े पर धवल मुस्कान

    बिटिया के मुखड़े पर धवल मुस्कान

    beti

    मनुजता शूचिता शुभता,खुशियों की पहचान होती है।
    जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है।
    इसी बिटिया से ही खुशियाँ,सतत उत्थान होती है।
    जहाँ बिटिया के मुखड़े,पर धवल मुस्कान होती है।

    सदन में हर्ष था उस दिन,सुता जिस दिन पधारी थी।
    दिया जिसने पिता का नाम,यह बिटिया दुलारी थी।
    महा लक्ष्मी यही बेटी,यही वात्सल्य की दानी।
    सदा झंडा गड़ाती है,सुता जिस दिन जहाँ ठानी।
    मिटाने हर कलुषता को,सुता को ज्ञान होती है।
    जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है।

    यही बंदूक थामी है,जहाजे भी उड़ाती है।
    यही दो कुल सँवारी है,यही सबको पढ़ाती है।
    सुता सौंधिल मृदुल माटी, सुता परित्राण की घाटी।
    सुता से ही सदा सजती,सुखद परिवार परिपाटी।
    मगर क्योंकर पिता के घर,सुता मेहमान होती है।
    जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है।

    डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

  • आज बेटी किसी की बहू

    आज बेटी किसी की बहू

    आज बेटी किसी की बहू

    beti

    गीत – उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    दर्द को जो समझते नहीं हैं कभी, बेटियों से किसी की करें हाय छल।
    क्यों बहू को यहाँ नौकरानी समझ, जुल्म ढाने लगे लोग हैं आजकल।।

    आज बेटी किसी की बने जब बहू, क्यों समझते नहीं लोग मजबूरियाँ।
    बढ़ रही खूब हिंसा घरेलू यहाँ, प्यार के नाम पर भी बढ़ीं दूरियाँ।।


    कर्ज लेकर निभाई गई रस्म थी, और बाबुल बहुत अब रहे हाथ मल।
    क्यों बहू को यहाँ नौकरानी समझ, जुल्म ढाने लगे लोग हैं आजकल।।

    बेबसी से जुड़ीं जो बहूरानियाँ, वे धुनीं इस तरह मान लो हों रुई।
    लग रहा आ गई हो बुरी अब घड़ी, और जिसकी यहाँ थम गई हो सुई।।



    जो उचित हो उसे लोग अनुचित कहें, इसलिए ही न निकला कहीं एक हल।
    क्यों बहू को यहाँ नौकरानी समझ, जुल्म ढाने लगे लोग हैं आजकल।।

    हो गई साधना हाय सारी विफल, अब निकलती हृदय से यहाँ बद्दुआ।
    जो न सोचा कभी हो गया अब वही, नर्क से भी बुरा आज जीवन हुआ।।


    लाडली जो रही मायके में कभी, हो गई आज ससुराल में वह विकल।
    क्यों बहू को यहाँ नौकरानी समझ, जुल्म ढाने लगे लोग हैं आजकल।।

    क्यों न दिखती कहीं आज संवेदना, स्वार्थ में क्यों यहाँ लोग डूबे हुए।
    साथ देते नहीं न्याय का वे कभी, दर्द से दूसरों के रहे अनछुए।।

    बढ़ गई खूब हैवानियत क्यों यहाँ, और इंसानियत क्यों हुई बेदखल
    क्यों बहू को यहाँ नौकरानी समझ, जुल्म ढाने लगे लोग हैं आजकल।।


    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद- निवास’, बरेली
    मोबा.- 98379 44187

  • बेटी पर कविता – सुशी सक्सेना

    बेटी पर कविता – सुशी सक्सेना

    बेटी पर कविता – सुशी सक्सेना

    beti

    मेरी बिटिया, मेरे घर की शान है।
    मेरे जीने का मकसद, मेरी जान है।

    पता ही न चला, कब बड़ी हो गई,
    मेरी बिटिया अपने पैरों पे खड़ी हो गई,
    मेरे लिए अब भी वो एक नन्हीं कली है,
    मेरे अंगना कि एक चिड़िया नादान है।

    या रब, हर बुरी नजर से उसे बचा कर रखना,
    उसकी जिंदगी को बहारों से सजा कर रखना,
    कोई नमीं भी छू न सके उसकी पलकों को,
    हर हसरत उसकी पूरी हो, यही अरमान है।

    मेरी परछाईं वो, मेरी पहचान है।
    मेरी बिटिया मेरा अभिमान है।

    सुशी सक्सेना

  • नन्हीं चिड़िया पर कविता – मीना रानी

    नन्हीं चिड़िया पर कविता – मीना रानी

    नन्हीं चिड़िया पर कविता

    beti

    माँ
    तेरे आंगन की
    मैं एक
    नन्हीं चिड़िया
    खेलती-चहचहाती
    आंगन में
    सुबह उठते ही
    कानों में
    रस भरती
    फुदकती फिरती
    मुझे देख
    भूल जाती तूं
    सारे गम जहान के
    काम दिन-रात
    मैं करती
    तेरी सेवा मैं करती
    बदले में कुछ न चाहती
    बड़ी हुई तो
    उड़ गई
    इस आंगन से
    माँ भूल न जाना
    इस नन्हीं चिड़िया को ।

    -मीना रानी, टोहाना
    हरियाणा

  • बेटियों पर हिंदी कविता -रबिना विश्वकर्मा

    बेटियों पर हिंदी कविता -रबिना विश्वकर्मा

    बेटियों पर हिंदी कविता -रबिना विश्वकर्मा

    beti

    बेटी को पढाने में लगता है डर,
    पर ये नहीं सोचा बेटियाँ ही
    बनाती हैं सुंदर सा घर ।।

    आज की दुनिया सताती है बेटियाँ को,
    लेकिन फिर भी सारे दुःखो को
    सहती है बेटियाँ ।।

    एक नहीं दो घरो को सॅभालती है बेटियाँ ,
    फिर भी अकेली रह जाती हैं बेटियाँ ।।

    ना जाने कौन से जन्म का पाप भोगती है बेटियाँ,
    अपना सुख दूसरो को दे देती है बेटियाँ ।।

    फिर भी हसती मुस्कराती रहती हैं बेटियाँ,
    ना जाने कौन सी बात है बेटियों में,
    कि सारी बात सह लेती है बेटियाँ ।।

    फिर भी लोग कहते हैं ,
    कि पराई होती है बेटियाँ ,
    पराई होती है बेटियाँ ।।

    रबिना विश्वकर्मा