बेटी पर कविता – सुशी सक्सेना

बेटी पर कविता – सुशी सक्सेना

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मेरी बिटिया, मेरे घर की शान है।
मेरे जीने का मकसद, मेरी जान है।

पता ही न चला, कब बड़ी हो गई,
मेरी बिटिया अपने पैरों पे खड़ी हो गई,
मेरे लिए अब भी वो एक नन्हीं कली है,
मेरे अंगना कि एक चिड़िया नादान है।

या रब, हर बुरी नजर से उसे बचा कर रखना,
उसकी जिंदगी को बहारों से सजा कर रखना,
कोई नमीं भी छू न सके उसकी पलकों को,
हर हसरत उसकी पूरी हो, यही अरमान है।

मेरी परछाईं वो, मेरी पहचान है।
मेरी बिटिया मेरा अभिमान है।

सुशी सक्सेना

सुशी सक्सेना

यह काव्य संकलन उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में अवतरित लेखिका सुशी सक्सेना के सहयोग से हो पाई है । अभी आप इंदौर मध्यप्रदेश में हैं । अभी आप अवैतनिक संपादक और कवयित्री के रूप में kavitabahar.com में अपना सेवा दे रही है। आपकी लिखी शायरियां और कविताएं बहुत सी मैगजीन और न्यूज पेपर में प्रकाशित होती रहती हैं। मेरे सनम, जिंदगी की परिभाषा, नशा कलम का, मेरे साहिब, चाहतों की हवा आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

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