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बेटी पर कविता – सुशी सक्सेना

बेटी पर कविता – सुशी सक्सेना

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मेरी बिटिया, मेरे घर की शान है।
मेरे जीने का मकसद, मेरी जान है।

पता ही न चला, कब बड़ी हो गई,
मेरी बिटिया अपने पैरों पे खड़ी हो गई,
मेरे लिए अब भी वो एक नन्हीं कली है,
मेरे अंगना कि एक चिड़िया नादान है।

या रब, हर बुरी नजर से उसे बचा कर रखना,
उसकी जिंदगी को बहारों से सजा कर रखना,
कोई नमीं भी छू न सके उसकी पलकों को,
हर हसरत उसकी पूरी हो, यही अरमान है।

मेरी परछाईं वो, मेरी पहचान है।
मेरी बिटिया मेरा अभिमान है।

सुशी सक्सेना

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