आज बेटी किसी की बहू

आज बेटी किसी की बहू

beti

गीत – उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

दर्द को जो समझते नहीं हैं कभी, बेटियों से किसी की करें हाय छल।
क्यों बहू को यहाँ नौकरानी समझ, जुल्म ढाने लगे लोग हैं आजकल।।

आज बेटी किसी की बने जब बहू, क्यों समझते नहीं लोग मजबूरियाँ।
बढ़ रही खूब हिंसा घरेलू यहाँ, प्यार के नाम पर भी बढ़ीं दूरियाँ।।


कर्ज लेकर निभाई गई रस्म थी, और बाबुल बहुत अब रहे हाथ मल।
क्यों बहू को यहाँ नौकरानी समझ, जुल्म ढाने लगे लोग हैं आजकल।।

बेबसी से जुड़ीं जो बहूरानियाँ, वे धुनीं इस तरह मान लो हों रुई।
लग रहा आ गई हो बुरी अब घड़ी, और जिसकी यहाँ थम गई हो सुई।।



जो उचित हो उसे लोग अनुचित कहें, इसलिए ही न निकला कहीं एक हल।
क्यों बहू को यहाँ नौकरानी समझ, जुल्म ढाने लगे लोग हैं आजकल।।

हो गई साधना हाय सारी विफल, अब निकलती हृदय से यहाँ बद्दुआ।
जो न सोचा कभी हो गया अब वही, नर्क से भी बुरा आज जीवन हुआ।।


लाडली जो रही मायके में कभी, हो गई आज ससुराल में वह विकल।
क्यों बहू को यहाँ नौकरानी समझ, जुल्म ढाने लगे लोग हैं आजकल।।

क्यों न दिखती कहीं आज संवेदना, स्वार्थ में क्यों यहाँ लोग डूबे हुए।
साथ देते नहीं न्याय का वे कभी, दर्द से दूसरों के रहे अनछुए।।

बढ़ गई खूब हैवानियत क्यों यहाँ, और इंसानियत क्यों हुई बेदखल
क्यों बहू को यहाँ नौकरानी समझ, जुल्म ढाने लगे लोग हैं आजकल।।


रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
‘कुमुद- निवास’, बरेली
मोबा.- 98379 44187

You might also like