हिन्दी काव्य विधायें

विधा का साधारण अर्थ प्रकार, किस्म, वर्ग या श्रेणी है। यह शब्द विविध प्रकार की रचनाओं को वर्ग या श्रेणी में बांटने से उस विधा के गुणधर्मो को समझने में सुविधा होती है।  काव्य की अनेक विधायें में दोहा, सोरठा , विविध छंद आदि हिन्दी काव्य विधायें हैं।

हिन्दी काव्य विधायें

मात्रिक छंद

मात्रिक शब्द मात्रा से सम्बन्धित है । जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं।

सम मात्रिक छंद

 जिस छंद के सभी पदों में मात्राओं की संख्या समान होती है उन्हें सम मात्रिक छंद कहते हैं।

अर्धसम मात्रिक छंद

जिस छंद का पहला और तीसरा चरण तथा दुसरा और चौथा चरण आपस में एक समान हो, वह अर्द्धसम मात्रिक छंद होता है, परंतु पहला और दूसरा चरण एक दूसरे से लक्षण में अलग रहते हैं। 

विषम मात्रिक छंद

जिस छंद के पदों में असमानता विद्यमान हो वे विषम मात्रिक छंद की श्रेणी में आते हैं। 

वर्णिक छंद

वर्णों के गणना के आधार पर रचा गया छन्द ‘वार्णिक छन्द’ कहलाता है। वर्णों की संख्या, गणविधान, क्रम, तथा लघु-गुरु स्वर के आधार पर पद रचना होती है, उसे ‘वर्णिक छंद’ कहते हैं।

सम वर्ण वृत्त

जिस छंद के सभी चरणों का लक्षण एक समान रहता है वे सम वर्ण वृत्त कहलाते हैं।

  • वापी,
  • सुमति,
  • इन्द्रवज्रा,
  • कलाधर 

अर्धसम वर्ण वृत्त

अर्धसम छंदों में चरण क्रमांक एक तीन का और चरण क्रमांक दो चार का एक ही विधान रहता है। पर एक दल के दोनों चरणो (1 और 2) का विधान एक दूसरे से अलग रहता है। वर्ण वृत्त के पद के प्रथम चरण और द्वितीय चरण के अंत्याक्षर एक समान हों तो इन दोनों चरण की तुक मिलाई जाती है अन्यथा चरण एक और तीन तथा चरण दो और चार की तुक मिलाई जाती है।

  • वियोगिनी छंद,
  • द्रुतमध्या छंद,
  • यवमती छंद 

वर्ण विषम छंद

छंद के चारों चरण लक्षण में विषम होते हैं। जिन चरणों का अंत समान होता है उनकी तुक मिला दी जाती है।

  • सौरभक छंद
  • द्रुतमध्या छंद

जापानी विधा

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