सिमटी हुई कली/मनीभाई नवरत्न

सिमटी हुई कली/मनीभाई नवरत्न

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सिमटी हुई कली ,मेरे आंगन में खिली।
शाम मेरी ढली,तब वह मोती सी मिली।
रोशनी छुपाए जुगनू सा
सारी सारी रात मेरे घर में जली ।

चंचलता ऐसी जैसे कोई पंछी
ओढ़े हुए आसमां की चिर मखमली।
खुशबू फैल जाए जहां वह मुस्कुराए
कदम पड़े उसकी गली गली।

सिमटी हुई कली , मेरे आंगन में खिली।

  • मनीभाई नवरत्न

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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